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ढ ूँढते हए खड़े होकर सीखा 1दया
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छटाक भर जीवन !
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यह!ं से #मलता ह उSह
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इससे &या होगा ? आ?मबल
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#म¹ी क घर घुल जाते ह पीछ मुड़कर नह!ं दखतीं
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जैसे बाKरश क बाद मुह म दवाए रखतीं हg शूSय
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क>ड़े-मकड़' क> शूSय क भीतर +वेश करते ह!
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धरती पर बसी दु%नया उजड़ जाती ह बनाती ह' जैसे पृlवी का मुख
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या6ा क दर#मयां
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9फर से बसने क +यास म
वे उदास नह!ं होते ह
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चींट! पहाड़ चढ़ती
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कभी नह!ं थकती ये उनक 1ह से का
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$मबW चलती ह सुख नह!ं ह
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ये सीखाते हए 9क उSह भी आता ह खेत क सार 9क सार बीज
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पंि&तय' म चलना जब फ ू टते हg गभ गृह स
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वहाँ #लंग भेद नह!ं होता ह
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चलते हए वे बताती हg - जीव और जीवन
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मानो ,एक क पीछ दूसर! सJबोUधत करते हए कहता ह 'Dयि&त '
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दूसर क पीछ तीसर! खड़ी ह
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एकता और अखंडता का पाठ बावजूद, सबक> भूख को
9फर - 9फर दोहराती ह पहचानता ह
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जब9क इस +9$या म तुम भी पहचान लो वयं को
हजार - हजार मत बा Uगरते हए अपने ह! पीड़ा से हाथ छ ु ड़ाना
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मनुMय जीवन इसी सद! म
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क> पKरभाषा को पंि&त म हवा क रथ पर सवार
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#लख कर होकर तलाशती ह वे एक िजंदगी
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मानव स¼यता का पाठ िजसे अपना कहा जा सक
पाठशाला से बाहर
मई – जुलाई 95 लोक ह ता र