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संपादकीय










                    उनकी कुरबायनिों ने                                                अिि कुमार मोहता


                                                                                      प्रधान संपादक
                    यदखाए 70 िसंंत






                                रत को आजाद हुए 70 साल हो गए लेनकि आजादी के मारिे सच          ”
                                कनहए तो आज तक हम समझ ही िहीं पाए. इसकी वजह रह है नक   सबको ऐशो आरा्म
                                हमारी सोच की पररनध में राष्ट् िहीं है बशलक पररवार और सवइचछा
                       भारूपी मारा है. आज िवरुवाओं से अगर आजादी के बारे में पूछा जाए   चावहए. कर अदायगी से
                       तो शारद गार पर निबंध की तरह आजादी को तारीख में बांध कर बराि कर देंगे और   बचने के वलए खुले तौर
                       उि आजाद हसरतों को सवयावरापी ढंग से परोसेंगे नजसकी चाह आजादी के दीवािों िे
                       कभी िहीं की होगी. आजादी के दीवािों की बात करें तो उिमें खुद के नलए कुछ पािे की   पर सड़वकयां आंदोलन भी
                       चाह कभी िहीं रही. उिमें ि तो बरबानदरों का खौफ था ि ही  रोनटरों की परवाह. बडे   देखने को व्मलते हैं और
                       से बडे जुलमों नसतम भी उिके कदमों को ि रोक सके. कोई ऐसी बाधा ि हुई, नजसिे
                       उिके सामिे घुटिे ि टेक नदए. अपिे हौसलों से हर मुशशकल का सीिा चीरते हुए वे   इन आंदोलनों के स्मथ्थकों
                       आजादी की मंनजल की तरफ बढ़ते ही चले गए. ि तो नहसाब है, ि कीमत है उिकी   की तादाद भी वदन-ब-वदन
                       कुरबानिरों का.
                         हम तो कुछ करते िहीं और उिके नकए को रूं ही भूले जा रहे हैं. आज हम उि   बढ़ती ही जा रही है. ऐसे ्में
                       अंग्रेजों से भी बदतर हो गए हैं नजनहोंिे हमें गुलामी की बेनडरों में जकड कर हमारे
                       अनधकारों को छीि नलरा था और उि अनधकारों को वापस हानसल करिे के नलए ही इस   सिाल उठता है वक भला
                       नमट्ी के लाखों वीर सपूतों िे खुद को निछावर कर नदरा.   सरकार कयों चंद लोगों
                         सबको ऐशो आराम चानहए. कर अदारगी से बचिे के नलए खुले तौर पर सडनकरा
                       आंदोलि भी देखिे को नमलते हैं और इि आंदोलिों के समथयाकों की तादाद भी नदि-  के फायदे पर गौर करें.
                       ब-नदि बढ़ती ही जा रही है. ऐसे में सवाल उठता है नक भला सरकार करों चंद लोगों   रही बात गरीबों की तो हर
                       के फारदे पर गौर करें. रही बात गरीबों की तो हर पररवतयाि में थोडी बहुत नदककतें तो
                       आती ही हैं. करा देश की आजादी के नलए खुद को कुरबाि करिे वाले वीरों को लडिे के   पररित्थन ्में थोड़ी बहुत
                       एवज में घी लगी रोनटरां नमलती थीं? नवकास की गनत थमी तो सरकार पर निशािा और   वदककतें तो आती ही हैं. कया
                       खुद का लाभ कमा तो सरकार पर निशािा. करा आपको खुद के नगरेबाि में झांक कर
                       देखिे की जरूरत िहीं महसूस होती? भ्रष्टाचार को करा कोई समझा सकता है? कर   देश की आजादी के वलए
                       की चोरी से देश ्जरादा नदिों तक आजाद िहीं रह पाएगा बशलक गुलाम होगा. जो कर
                       सरकार आप से लेती है वो तो आप ही के सुख-सुनवधा में खचया भी कर देती है. सडक,   खुद को कुरबान करने
                       पुल और दूसरी सुनवधाएंं जो आपको सरकार की ओर से नमलती है वो कहां से आती है.   िाले िीरों को देश के वलए
                       इस पर भी नवचार करिा चानहए. रह बात सही है नक आजादी के 70 साल बाद भी हमारे
                       सामिे चुिौनतरों का अंबार है और इि चुिौनतरों से निपटिे के  नलए हमें केवल सरकार   लड़ने के एिज ्में घी लगी
                       पर निभयार िा हो कर सवतंत्ता संग्राम की तरह की एक जिचेतिा की आवशरकता है,   रोवटयां व्मलती थी?
                                                                                    ”
                       तभी सहीं अथथों में आजादी का ितीजा निकल सकेगा.  n






                                                                        w1-15 अगस्त, 2017w I गंभीर समाचार I  3
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