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आजादी अब एक वििाद में विर गई है. कई सारे लोग मानते हैं वक यह महज सत्ा का हसताांतरण
                                    था. ठीक िैसे ही जैसे एक पार्टी की सरकार से सत्ा दूसरी पार्टी को वमल जाए. दवषिणपांथी मानते
                                      हैं वक सत्ा पाने के वलए काांग्ेस ने भारत का विभाजन करिाया तथा मुससलम तुषर्ीकरण के
                                    चलते वहांदुओं को अपने ही देश में दबकर रहने को मजबूर वकया. दूसरी तरफ िामपांथी मानते हैं
                                     वक आजादी के बाद सरकार पूांजीपवतयों के दबाि में आ गई इसवलए देश को एक सेकुलर और
                                     समाजिादी सरकार का ढाांचा नहीं वमल पाया. वसफ्फ काांग्ेसी ही इस आजादी को आजादी मानते
                                    हैं. समाज में भी आजादी के कई पषि हैं. दवलत कहते हैं वक अांग्ेजों ने उनहें सिणणों की गुलामी से
                                    मुस्त वदलाई, मगर िे जलदी ही चले गए इसवलए हमारी आजादी फीकी ही रही. सिण्णिादी मानते
                                   हैं वक आरषिण देकर आजाद भारत की सरकार ने उनके साथ िात वकया. यानी वजतनी मुांह उतनी
           शंभूना् शुकल             बातें. आजादी का हमारे देश में कोई सही वचत्र अभी तक नहीं उभरा. हर वयस्त वकसी न वकसी
           सुपररनचत संपादक एवं राजिीनतक   रूप में असांतुषर् है. और एक प्रश्न उठता है वक आजादी वमली तो वकससे? नौकरशाही यथाित है,
           नवशलेरक                  पुवलस िैसे ही जनता का उतपीड़न करती है. एक सामानय नागररक जो र्ै्स देता है िह अांग्ेजों
           shambhunaths@gmail.com
                                   की सरकार के समय की तुलना में खुद को कहीं जयादा कमजोर महसूस करता है. यही कारण है
                                   वक आजादी के विरुद्ध लोग एकजुर् होने लगे हैं और उनका कहना है वक 15 अगसत 1947 मात्र
                                                सत्ा हसताांतरण का वदन है. भारत के आजाद होने का नहीं.












































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