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आवरण कथा

          जो
                लोग आजाद भारत िा सही ्तलब जानते हैं उनहें पता है कि
                अंग्ेज भारत िो अपना उपकनवेश बनाए थे. इस उपकनवेश
                िे संसाधनों िा पूरा लाभ उठाने िे कलए उनहोंने कजन-कजन
          चीजों िी भारत ्ें ्ानयता कदलाई वे सब अब अंग्ेजों िे हाथ से कनिल
          िर भारतीयों िे हाथ ्ें आ गई हैं. इन्ें सबसे बड़ी चीज है रेल सेवा
          कजसने पूरे भारत ्ें एि अनूठी क्ांकत िी है. रेलवे ही वह उपक्् है
          कजसे भारत ्ें लािर अंग्ेजों ने अपने पांवों पर िुलहाड़ी चलवा दी.
          हालांकि यह सच है कि रेलवे ने कवलायती ्ाल िो भारत िे गांव-
          गांव ति पहुंचाया, पर यह भी सच है कि इसने पूरे देश ्ें एि साथ
          अंग्ेजों िो भारत से भगाने िी भावना भी पैदा िी. गांधी जी जब दकक्षण
          अफ्ीिा से आए तो पूरे भारत िा एि दौरा रेलवे द्ारा ही किया और इस
          कवशाल देश से पररकचत हो पाए वना्ण वे एि सा्ानय गुजराती िी तरह
          बस गुजराती बकनया ही बने रहते. यह रेलगाड़ी ही थी कजसने गांधी जी
          िा पररचय भारत िे किसानों और उनिी गरीबी से िराया.
            इस रेलगाड़ी और उससे जुड़े जन्ानस िा एि किससा सुनाते
          हुए ्ैं यह भी बताना चाहूंगा कि किस तरह रेलगाड़ी ने एि सा्ानय
          कहंदुसतानी िी कजंदगी बदल डाली. यह किससा तो िहने िो है पर
          घटना िा दृ्य सही है. िानपुर ्ें ्ेरे गांव िे पास से एि रेल लाइन
          गुजरती है कजसे झांसी लाइन िहा जाता है. उस पर झांसी और उसिे
          आगे िे दकक्षण िी रेलगाकड़यां कदन-रात गुजरती हैं. बचपन ्ें जब भी
          ह् शहर से अपने गांव जाते तो वह रेल लाइन देखते और उस पर
          गुजरने वाली गाकड़यों िो भी जो छुिछुि िरती धुआं उड़ाती गुजर
          जातीं और दूर कक्षकतज ्ें उनिी परछायीं भर कदखती रहती. ्ैं सोचा
          िरता कि एि कदन किसी ट्रेन ्ें बैठिर ्ैं भी चला जाऊंगा दूर कक्षकतज
          िे पास. वषषों हो गए वह सपना देखे. ट्रेनों ने भारतीयों िो एि सपना
          कदखाया दूर-दूर ति फैले इस कवशाल और वृहद देश से जुड़ जाने
          िा. कजस किसी िो भी नौिरी नहीं क्लती अथवा बार-बार िे सूखे
          से परेशान होिर वह शहर िी राह पिड़ता तो इनहीं ट्रेनों ्ें बैठिर
          चला जाता - िोई िलित्ा, िोई बंबई और िोई-िोई कदलली. िभी  वाली वही पहली ट्रेन थी कजसने वयापार और उद्ोग िी शकल बदल दी.
          सोकचए तो पाइएगा कि भारत ्ें भारतीयों िे पलायन िे पीछे इन ट्रेनों   िालिा ्ेल वह ट्रेन थी कजसने पंजाब, हररयाणा और ्ारवाड़
          िी सम्ोहि शशकत ने कितना बड़ा िा् किया है. औसत भारतीय  से कनिले वयापाररयों िो नई पनप रही भारत िी राजधानी िलित्ा
          ट्रेन देखते ही एि ऐसे शहर िी िलपना िरता है जहां ग् नहीं बस  ्ें जािर वयापार िरने िो उिसाया. हालांकि यह एि प्रश्न उठता
          खुकशयां ही खुकशयां हैं.                          है कि भला िोई ट्रेन िैसे किसी िो उिसा सिती है, पर यह भी
            यह दकक्षण जाने वाली रेलवे लाइन थी, पर िानपुर शहर ्ें कजस  िटु सतय है कि पलायन िो ट्रेनें बािायदा उिसाती हैं. वे एि छोर
          गोकवंदनगर ्ोहलले ्ें ्ेरा घर था वहां से यह रेल लाइन तो गुजरती  िो दूसरे छोर से जोड़ती हैं. 1866 ्ें जब यह ट्रेन शुरू हुई तब ईसट
          ही, साथ ्ें उत्र भारत िो पूवटी भारत से जोड़ने वाली कदलली-हावड़ा  इंकडया िंपनी िा सारा धयान भारत ्ें अपना ्ाल खपाने और यूरोप
          रेल लाइन गुजरती. वहां एि रेलवे याड्ड था. गोकवंदनगर ्ें झांसी और  िे उतपादों िे कलए नया बाजार तलाश िरने िा था. उनहें भारत ्ें
          ्ुंबई तथा दकक्षण से आने वाली ट्रेनें उस ट्ररैि पर क्लती थीं कजस  ससते ्जदूर क्ल रहे थे और कबचौकलये वयापारी भी तथा हर तरह िे
          पर कदलली हावड़ा िी ट्रेनें दौड़ा िरती थीं. वह एि ऐसा लोिो याड्ड  उद्ोगों िो कविकसत िरने िे कलए अनुिूल वातावरण भी. भारत िा
          था जहां पर गुडस ट्रेन ्ें ्ाल से भरे कडबबे जुड़िर रवाना होते थे.  एि बड़ा कहससा स्ुद्र तटीय है और ऊष्ण िकटबंधीय इलािा है जो
          तब वहां असंखय पटररयां थीं और िोयला, पेट्रोल, खाद्ान् से भरी  जूट और िपड़े िे कलए ्ुफीद है. इसिे अलावा ्ैदानी इलािे िृकष
          ्ालगाकडया खड़ी ही रहती थीं. गोकवंदनगर से पटररयों िे पार िानपुर  िे कलए खूब उपजाऊ हैं, फलों िी पट्ी है खासिर आ् िे कलए तो
          शहर जाने वाले लोग पटररयां फांदते और वहां खड़ीं गुडस ट्रेनों िे नीचे  यह क्षेत् सवग्ण है. एि तरह से भारत ्ें िृकष उतपाद और बागवानी िी
          से कनिल िर गंतवय ति पहुंचा िरते. यह बहुत जोकख् भरा िा्  भरपूर संभावनाएं उनहोंने देखीं और नया ्ाल खपाने हेतु बाजार भी.
          था. इसकलए यहां पर पुल बनाने िा फैसला किया गया. जब वह पुल  एि तरफ तो खूब धनाढ्य राजे-्हाराजे थे और बड़े से बड़े वयापारी
          बन रहा था तब अकसर ्ैं उस पुल िे ऊपर जाता और पुल िे नीचे से  कजनिे पास न तो पैसे िी ि्ी थी न उनिे शौि ि्तर थे. यही
          भागती ट्रेनों िो देखा िरता. वन अप और टू डाउन िालिा ्ेल जब  िारण रहा कि ईसट इंकडया िंपनी िे डायरेकटरों और अफसरों ने एि
          उस पुल िे नीचे से गुजरतीं तो सारी ट्रेनें खड़ी हो जाया िरतीं ्ानों  तरफ तो इन राजा-्हाराजाओं और वयापाररयों िो यूरोपीय ्ाल खपाने
          उसे सला्ी दे रही हों. और देती भी कयों न भारत िा भकवष्य कलखने  िी कजम्ेदारी सौंपी तो दूसरी तरफ ्जदूरों िो इतनी ि् पगार पर
           8   I गंभीर समाचार I w1-15 अगस्त, 2017w
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