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          मनुष्य:   हाय कितनी गर्मी है चलो थोडी देर पेड ि े
                      नीचे बैठ जाता ह ूं |
          वृक्ष:      गर्मी तो तुम्हें बहुत लग रही होगी?
          मनुष्य:   हाूं तो !!
          वृक्ष:      प्यास भी लग रही होगी?
          मनुष्य:   हाूं पर आप र्मुझसे यह सब क्यों
                      पूछ रहे हैं?
          वृक्ष:     क्योंकि तुर्म र्मनुष्य हर्म वृक्षों ि े  भावों
                     िो सर्मझते ही नहीं हो
          मनुष्य:   र्मतलब र्मैं ि ु छ सर्मझा नहीं !
          वृक्ष:     र्मतलब यह कि तुर्म यह तो र्मानते हो
                     ना कि तुर्म आज र्मेरी वजह से ही कजूंदा हो और तुम्हें सब सुकवधाएूं र्मुझसे ही कर्मलती है
          मनुष्य:   हाूं यह तो सच है |
          वृक्ष (रोते हुए ): किर भी तुर्म सब र्मुझे ही र्मार देते हो |
          मनुष्य:   अरे आप शाूंत हो जाइए | हर्म इसि े  कलए शकर्मिंदा हैं और र्मैं आपसे वादा िरता ह ूं कि अब
                      पेडों िी सूंख्या अवश्य बढेगी हर्म सब पर िाटेंगे नहीं बककि उगाएूंगे |
          वृक्ष:      तुर्म सब हर्में िाट िर अपने ही पैरो पर ि ु कहाडी र्मार रहे थे यकद हर्म नहीं तो तुर्म भी नहीं |
          मनुष्य:  हाूं आपने सही िहा अब हर्म अकधि से अकधि पेड उग आएूंगे |
          वृक्ष:      पेड लगाना वरना तुर्म कजूंदा ि ै से रहोगे अगर िाटना भी हो तो हर्मारे डाकलयों िो िाटो
                     और अगर एि पेड िाट दो तो दो लगाओ
          मनुष्य:   अब हर्म अवश्य ही ऐसा िरेंगे |
          वृक्ष:      ठीि है र्मुझे तुर्म सब से बहुत उम्र्मीद है र्मुझे कनराश र्मत िरना |
                                             पेड़ बचाओ पेड़ लगाओ
                                                                                                ननवेनिता जोशी
                                                                                                 कक्षा  - 12  ‘ब’





