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भववष्य के महल खड़े कर शलए थे उनके खिंडरों के ट ुकड़े भी बटोरने के
लायक उसकी हैसीयत ना तो खुद उसके अपने घर में ही रही है और ना
ही वह बस्ती कक जजसकी हवाओिं में हर हदन साँस लेकर वह पला-बढ़ा
था.
अिंबर से इस मुलाक़ात के पश्चात किर बदली उससे अपनी उन प्यार
की भावनाओिं के साथ कभी भी नहीिं शमली जैसा कक वह पहले शमल
शलया करती थी. एक ही बस्ती में रहते हए वह अिंबर को हर रोज़ देखा
ु
तो करती थी मर्र किर भी उसके नज़दीक जाने का साहस वह कभी भी
नहीिं कर सकी. वह मन ही मन घटती रही. अपने आपको जलाती रही.
मर्र किर भी अपनी जलन से उसने ककसी को वाककि भी नहीिं होने
हदया. अपने प्यार की समस्त हसरतों की अथी बनाकर उसने चुपचाप
कत्रब्रस्थान में सदा के शलए दफ़न कर हदया.
उसकी मािं ने उसकी परेशानी को समझा, जाना और महसूस ककया,
तब ववचार ककया कक यहद बदली यहाँ रही तो वह एक हदन घुट-घुटकर
मर ही जायेर्ी. सो बदली के स्नातक की परीक्षा पास करते ही उन्होंने
उसको आर्े की शशक्षा के बहाने ववदेश शभजवा हदया. अमरीका आने के
पश्चात बदली ने इतनी समझदारी तो की कक अिंबर से आवश्यकता से
अगधक सम्बन्ध भी नहीिं रखा. ववदेश आने के बाद उसने अिंबर को पि
तो शलखा था लेककन जब उसका कोई भी उत्तर उसे नहीिं शमला तो किर
उसने भी कोई अगधक कोशशश किर से सम्बन्ध बनाने की नहीिं की थी.
तब इस प्रकार से ववदेश में अपनी पढ़ाई पूरी करते हए उसने डॉक्टरेट
ु
की उपागध भी हाशसल कर ली. ककतनी जज़दी और कब दस वषच यूँ ही
व्यस्तता में व्यतीत हो र्ये, क ु छ पता ही नहीिं चला. और आज जब वह
वापस अपने देश आई थी तो के वल हदल में एक हसरत भर थी कक कम
से कम वह अपने उस अिंबर से एक बार जरुर शमलेर्ी तो अवश्य ही कक
जजसके साथ उसने कभी अपने प्यार के शसलशसले को आरम्भ करके
उसके एहसास को भाई की पवविता के ररश्ते में बदल भी शलया था.
मर्र कौन जानता था कक बदली के सामने ऐसा हदन किर कभी नहीिं आ
सका था. जाने वाला अपने मन में अपने अधूरे प्यार के सपनों की राख़
43 | चेतना जनवरी 2019 - माचच 2019