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मैं भूलकर





                                                            कहीिं...

                                            कहानी / शरोवन




                                          'जज़न्दर्ी में कभी अर्र मैं भूल कर
                                     कहीिं  अचानक  से  शमल  र्या  तुमको  तो

                                     पहचानने  की  कोशशश  तो  कर  लोर्ी
                                     मुझे?'

                                          'शलपट जाऊिं र्ी तुम से, लेककन शादी
                                     नहीिं करिं र्ी.'

                                          बदली क े शब्दों में लाचारी और होठों

                                     पर बे-बसी झलकी तो अिंबर को ये सोचते
        देर नहीिं लर्ी कक जजस लड़की को लेकर उसने अपने भववष्य क े महल खड़े
        कर शलए थे, उनके  खिंडरों क े ट ु कड़े भी बटोरने क े लायक उसकी हैशसयत ना

        तो  खुद  उसके   अपने  घर  में  ही  रही  थी  और  ना  ही  वह  मसीही

        बस्ती कक जजसकी हवाओिं में हर हदन सािंस लेकर वह पला-बढ़ा था.
             मन की पववि भावनाओिं के  शलहाि पर शलखी हई दो मसीही
                                                             ु
        युवाओिं  की  वह  प्रेम  कहानी  कक  जजसके   बिंधन  की  इजाजत  धमच,
        समाज, और ईश्वर तक नहीिं दे सका. यहद ये सच था तो इसका

        जजम्मेदार  कौन  था?  हदल  से  क ु रेद-क ु रेदकर  ममच  से  भरी  आहत
        भावनाओिं  को  जमा  करके   शलखी  र्ई  एक  माशमचक  और  ददच-भरी

        कहानी.


             बदली एक अरसे के  बाद जब भारत भ्रमि पर ववदेश से अपने घर
                               29 |   चेतना जनवरी  2019 - माचच 2019
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