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पय िवरण सुध र कर लो ”


             िृक्ष काट, कर ल  नादानी ,

             सूख गया धरती का पानी |

             सूखे नद  ,क ु एूँ तालाब ,

             िआ िातािरि पूरा खराब |
              ु
             िषाा कि िै ,गरिी भार  ,

             व्याक ु ल पशु -पक्षी ,नर-नार  |



             िृक्षों को ििने कटिाया ,

             िट  शीश से शीतल छाया |
             आओ सब मिल िृक्ष लगाएूँ ,

             कफर से लौटे घनी घटाएूँ |

             विपुल अन्न का िो उत्पादन ,
                                                                                      “ म ाँ ”
             विपदा का िो सके  ननिारि |
                                                                      म न  मेरे घर की दीव रों में ,
             पानी जीिन का आधार ,                                      चिंद  से मूरत है।

             कर लो पयाािरि सुधार |                                    पर मेरे मन क े मिंहदर में

                                                    “ स ईश ”          बस के वल म ाँ की सूरत है।
                                                                                    ब आाँख खुली तो अम्म  की,
                                                    कक्ष  :-प ाँच
                                                                                   गोदी में एक सह र  थ ।
                                                                                उसक  नन्ह  स  आाँचल मुझको,

                                                                                     भू-मिंडल से प्य र  थ ।
                                                                      मेरे स रे प्रश्नो क  वो ,

                                                                      फ़ौरन  ब व बन   ती थी।
                                                                      हम भूल गए वो खुद भूखी ,
                                                                      रहकर हमें खखल ती थी।
                                                                      हमको सूख  बबस्तर देकर ,

                                                                      खुद गीले में सो   ती थी।
                                                                                       ो म ाँ  ैसी देवी घर क े
                                                                                     मिंहदर में नहीिं रख सकते हैं।

                                                                                     वे ल खों पुण्य कर ले इिंस न
                                                                                      नहीिं बन सकते हैं।

                                                                                             “ श्रीमती रेणुक  ”
                                                                                                  हहिंदी पवभ ग
                                      G.D.V. Sairam, Class 2B
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