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मााँ मााँ


                                                “ मााँ तो आखखर मााँ िोती िै  ”….


                                     ‘मााँ ’ िर – पल िमारे सजनिरे भववष्य क े सपने संजोती िै ...



                                      अगर िमे क ज छ िो जाये तो ‘मााँ ’ रात भर निी सोती िै ...


                                       िमारी देख - रेख  मे ‘मााँ’ हदन – रात एक कर देती िै ...


                                         खजद भूखे रिकर ‘मााँ ’ िमारा पेट पूरा भर देती िै ...


                                         स्वयं िी कष्टो को मााँ िाँसते – िाँसते सि लेती िै...


                                     शसफु  कदमो की आिट से िआई ‘मााँ’ िमे पिचान लेती िै...


                                        बबना बोले िी ‘मााँ’ िमारा दज:ख – ददु जान लेती िै ...


                                     ननवारण िेतज ककसी भी िद तक जाने की ‘मााँ’ ठान लेती िै...


                                             ‘मााँ’ िै तो त्यौिार...त्यौिार से लगते िै...



                                          ‘मााँ’ हदवाली की रोिनी, िोली का रंग िोती िै ...


                                               ‘मााँ’ क े बबना सारे त्यौिार खलते िै...


                                           ‘मााँ’ ईद की ईदी, रामजान की दजआ िोती िै...


                            ‘मााँ’ किसमस मे बच्चो क े शलए मोजे मे टांकफया भर ‘संताक्लाज’ भी िोती िै ...


                                        अगर मानो तो भगवान से भी बढ़कर ‘मााँ’ िोती िै …


                               क्योंकक ‘भगवान ’ को भगवान समझने की समझ भी तो ‘मााँ’ िी देती िै !




                                                                         नाम : उत्कर्ष पाण्डेय

                                                                         कक्षा : सतवी स






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