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कोशिि कर
कोशिि कर
कोशिि कर, िल ननकलेगा।
आज निी तो, कल ननकलेगा।
अजजुन क े तीर सा सध,
मऱूस्थल से भी जल ननकलेगा।।
मेिनत कर, पौधो को पानी दे,
बंजर जमीन से भी फल ननकलेगा।
ताकत जजटा, हिम्मत को आग दे,
फौलाद का भी बल ननकलेगा।
जजन्दा रख, हदल में उम्मीदों को,
गरल क े समन्दर से भी गंगाजल ननकलेगा।
कोशििें जारी रख क ज छ कर गजजरने की,
जो िै आज थमा थमा सा िै, चल ननकलेगा।।
नाम : महिमा पाण्डेय
कक्षा : नवी स
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