Page 2 - karmyogi
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आत्र् निवेदि






            सिद्ध - पुरुष कवल हिर्ालय की कदराओं र्ें िी ििीं िआ करते, अपपतु जििकी आत्र्ा
                                                                                 ं
                                            े
                                                                                                                         ु
            र्ें     कर्म ,भजतत और ज्ञाि की त्रिवेणी बिती िै वि भी पूणम योगी ि। ऐिे िी पूणम योगी क े
                                                                                                                                           ै
            योग बल िे सिंचित                          िलवाि सिक्षण न्याि प्रनतक्षण                                 पुजपपत िो रिा िै,िर्स्त                           ऋतुओं र्ें

                                                                                     े
            इिकी िाखाए              ँ    अपिी           िरीनतर्ा का िंदि दती ि। िंपूणम िलवाि पररवार एवं िवांकररत ज्ञाि
                                                                                                      ै
                                                                                             े
                                                                                                                                                                    ु
            पुपप        उि योगी क े हदव्य आिीष का प्रनतफल िैं ।
                     े
            िर्ार पवद्यालय का रोर्-रोर् परर् आदरणीय स्वगीय श्री चगरधारी लाल िलवाि िी क े िरणों
            र्ें श्रद्धा -िुर्ि अपपमत करता ि। यिी वे िरण िैं, िो अिवरत िंघषम पथ पर िलते रि।
                                                                         ै
                                                                                                                                                                                    े
            पररजस्थनतयों क े प्रिंड झंझावात भी इि िाधक की िाधिा क े िर्क्ष ितर्स्तक िो गए।                                                                                      राि


            र्ें आिे वाली िर्स्त कहििाइयों का इन्िोंिे हृदय िे असभिंदि ककया। िीवि कर्म, भजतत और

            ज्ञाि की धाराओं र्ें अपिे अजस्तत्व को िर्ाहित करिे की प्ररणा दता ि।                                                                               इिक िाक्षात
                                                                                                                                े
                                                                                                                                            े
                                                                                                                                                      ै
                                                                                                                 े
            प्रनतऱूप पंडडत चगरधारी लाल िलवाि िी िैं।                                                ज्ञाि दवी िलवाि पवद्यालय अपिे श्रद्धा -
                                                                                                                                                                    ै
            पुपप इि पपवि पुस्तक क े र्ाध्यर् िे योग पुरुष क े िरणों र्ें िर्पपमत करता ि। जििकी

            किािी िर पन्िा किगा                           ।
                                                 े




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            निवदक पवद्यालय,
            ज्ञाि दवी िलवाि स्कल
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                                                      ू
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