Page 4 - karmyogi
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भूसर्का
थी नित िंघषम की धरा,
िल पडा अपवरत एक योद्धा,
स्वप्ि र्ें भी पल रिी थी
िि - सिक्षा,
ििि ििीं यि स्वप्ि था,
पर दृढ़ उिका र्ि था,
प्रिार िर्य का निर्मर् था,
े
पर िंकल्प िजतत क िर्क्ष
कर रिा काल भी
िर्ि था,
रुकी ििीं, थकी ििीं
उिकी अदम्य इच्छा,
अिवरत वि िूझता रिा,
िए िंघषम - िूि रिता रिा,
े
र्र्ामित वदिा को भी
े
दी उिि िोकरें ,
अभय कवि पििा हदया
िुिौनतयों को ,
' रार् िार् ' की तरि ,
र्ि र्ें बिी रिी ित्यनिपिा
नित िंघषम की धरा,
िल पडा अपवरत एक योद्धा।