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लखिका की कलम स े
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काव्य क जन्म में भी प्रसव सी ही पीडा होती ह , अतममन और लिनी
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दोनों ही ककरदार क जीवन क हर पक्ष को जीना शुरू करत हैं। पात्र इतन
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आत्मीय होत हैं कक उनक चित्रांकन में संवदनाए कभी आहत होती हैं तो कभी
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हर्म क अश्रु बहाती हैं, मानो उनक साथ जन्मांतर का संबध जुडा हो। इन
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अनुभूततयों न मुझ भी बहत गहर तक स्पशम ककया और ईश्वरीय कपा स उस
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महान व्यक्ततत्व क चित्रांकन में शब्द प्रतत शब्द अनायास ही रिते िल गए।
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आरभ स अंत तक मर ववद्यालय का कण - कण प्ररणा बनकर साथ िलते
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रह, मैं उन प्ररक शब्दों स उत्साहहत होती रही और अततः
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यह काव्य अपन ववराम स्थल पर आ पहिा।
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इस काव्य लिन क क्रम में, परम आदरणीय पंडित चगरधारी लाल सलवान
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जी क व्यक्ततत्व स जो मरा साक्षात्कार हआ, आनंद की वह अनुभूतत शब्दों की
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सीमा स पर ह, संक्षेप में मैं बस इतना ही कहगी कक इस काव्य रिना क हर
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शब्द क साथ-साथ ऐसा लगा मानो कक मैं उस महान आत्मा की संघर्म यात्रा पर
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िल पडी ह और उनक अनत पथ पर िल पडे वविार मर हृदय में घर कर िुक
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हैं।
आभार सहहत
िॉo रक्श्म छाया