Page 3 - karmyogi
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लखिका की कलम स                                        े
                                                                           े

                                             काव्य क जन्म में भी प्रसव सी ही पीडा होती ह , अतममन और लिनी
                                                                                                                                                        े
                                                                                                                                  ं
                                                         े
                                                                                                                          ै
                                                                                     े
                                                                                                                                                            े
                                                                                                                                     े
                                                                    े
                                      दोनों ही ककरदार क जीवन क हर पक्ष को जीना शुरू करत हैं। पात्र इतन
                                                                                                                ं
                                  आत्मीय होत हैं कक उनक चित्रांकन में संवदनाए कभी आहत होती हैं तो कभी
                                                                                                       े
                                                                           े
                                                       े
                                                                                            े
                                                                                                                                   ं
                                      हर्म क अश्रु बहाती हैं, मानो उनक साथ जन्मांतर का संबध जुडा हो। इन
                                               े
                                                        े
                                                                                                                                                        े
                                   अनुभूततयों न मुझ भी बहत गहर तक स्पशम ककया और ईश्वरीय कपा स उस
                                                                े
                                                                                        े
                                                                                                                                               ृ
                                                                             ु
                                   महान व्यक्ततत्व क चित्रांकन में शब्द प्रतत शब्द अनायास ही रिते िल गए।
                                                                 े
                                                                                                                                                      े
                                                                                                                         े
                                                                      े
                                                                       े
                                         ं
                                                 े
                                   आरभ स अंत तक मर ववद्यालय का कण - कण  प्ररणा बनकर साथ िलते
                                                      े
                                                                                                                                         ं
                                                                                            े
                                                  रह, मैं उन प्ररक शब्दों स उत्साहहत होती रही और अततः
                                                                        े
                                                                                        े
                                                                                                                                ं
                                                              यह काव्य अपन ववराम स्थल पर आ पहिा।
                                                                                                                                ु
                                       इस काव्य लिन क क्रम में, परम आदरणीय पंडित चगरधारी लाल  सलवान
                                                           े
                                                                      े
                                         े
                                                               े
                                जी क व्यक्ततत्व स जो मरा साक्षात्कार हआ,  आनंद की वह अनुभूतत शब्दों की
                                                                          े
                                                                                                   ु
                                               े
                                   सीमा स पर ह, संक्षेप में मैं बस इतना ही कहगी कक इस काव्य रिना क हर
                                                                                                                                                         े
                                                          ै
                                                                                                              ं
                                                     े
                                                                                                              ू
                                 शब्द क साथ-साथ ऐसा लगा मानो कक मैं उस महान आत्मा की संघर्म यात्रा पर
                                            े
                                                                                                                                                                े
                                 िल पडी ह और उनक अनत पथ पर िल पडे वविार मर हृदय में घर कर िुक
                                                  ं
                                                                    े
                                                                             ं
                                                                                                                             े
                                                                                                                           े
                                                  ू
                                                                                               हैं।
                                                                                       आभार सहहत
                                                                                       िॉo रक्श्म छाया
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