े दख निखरता पुि को गपवमत था पपता का र्ि, िाग उिी अंतर्मि की इच्छा े े िो करतारपुर ि पिावर तक , व्यापार का वधमि , अब तो े पिावर का हृदय भी उत्िव र्िा रिा था, िि हदिाओं र्ें, ं ु चगरधारी क यिोगाि े गा रिा था।