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बच्ि पा िक ें कान्वेंट की सिक्षा
सलए र्ि की यि इच्छा,
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ककए चगरधारी ि कई अिुरोध,
पर खोखली प्रनतपिा क प्रश्िों ि,
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िर बार ककया उिका पवरोध ,
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सिक्षा क स्वप्िों र्ें अटट बल था,
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तयोंकक पवश्वाि प्रबल था,
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िुिगा ईश्वर प्राथमिा क स्वर,
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खखलगा स्वप्ि बीि बि अविर।
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