Page 16 - karmyogi
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हिलि लगी,
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आि कक्षाओं क स्तंभ पर कक ं तु किते िैं,
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पडी इिकी बुनियाद, िबि गिि िोती िब
प्रागण र्ें भर े रात की कासलर्ा,
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पवरोध क स्वर थ, विीं उभर आती ि,
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अब कौि िुि फररयाद?
उषा की अरुखणर्ा,
अंततः थी वि जस्थनत,
आिा का दार्ि छोड िब र्ंद िोिे लगी
िुकी थी पररजस्थनत, पवद्यालय की श्वाि
भरी िभा र्ें,
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चगरधारी ि दी आवाि
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" र्ैं करता ि दानयत्व -
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िोगा पुिः निसर्मत
यि पवद्या का भवि।"