Page 11 - karmyogi
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ज्ञात उन्िें था,

                           स्वस्थ ति िै,

                            तो स्वस्थ र्ि।                                                                                                                 छ ू  ि िका

               यर्,नियर्,आिि , प्राणायार्                                                                                          कभी कोई व्यिि, ( बुरी आदत)
                                                                                                                                                                              े
                                               े
            थ िाजत्वक             िीवि क आयार्,                                                                                                    उि अल्पािारी ि,
               े
              दती थी प्रकनत भी उन्िें िरण,                                                                                                  व्याचधयाँ थीं कोिों दूर,
                े
                                 ृ
                                                                                                                                                                 े
                                                े
                           वि प्रकनत प्रर्ी                                                                                                      तेिस्वी क र्ुख पर
                                       ृ
                                 े
                 स्वििों क िंग करता था,                                                                                                       था हदव्यता का िूर।
                           प्रातः - भ्रर्ण।                                                                                                     पवषर् जस्थनतयों र्ें भी

                       'गोरखिाथ िश्र् '                                                                                                         उच्ि र्िोबल था,
                                                                                                                                                                         े
                                                                                                                                                    ृ
              था धरा का अिुपर् श्रगार ,,                                                                                                उि प्रकनत - पुरुष क ध्याि र्ें
                                                    ं
                                                    ृ
                                                                                                                                                       े
                                                                                                                                                                     ं
                           चगरधारी का र्ि                                                                                                       िबक सलए गुजित
                     करता था विीं पविार ,                                                                                                          प्राथमिा का स्वर था।
                 अद्भुत था र्ि पर नियिण,
                                                         ं
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