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"सिक्षापवद् चगरधारी"
ँ
िर्य की अिचगित र्ागें
ं
िुिौनतयों िी खडी थी,
यि तीव्र पररवतमि की
घडी थी,
कतमव्य ,िर्ाि और
पररवार
तनिक पवश्रार् ििीं था,
िबकी अपिी अपक्षा,
े
' दृढ़ िींव िो सिक्षा की '
े
पर चगरधारी क ध्याि र्ें
इि इच्छा को पवरार् ििीं था।
ध्यािास्थ थी अपि बच्िों
े
पररजस्थनत पवषर् थी,
की सिक्षा,
पर इच्छा िजतत अदम्य थी।
पपता क दानयत्व भर े
े
े
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अिक प्रश्ि चिह्ि थ खडे िए,
ु
र्ि को,
पपता की आत्र्ा पर िडे िए---
ु
ै
" प्रवि पवद्यालय का ि या व्यापार,
े
निि व्यविाय तयूँ बि रिा?
सिक्षा का आधार,