Page 3 - डी एन ए और पदचिन्ह
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अध्याय १ - �दल्ल� क� ओर
�दल्ल� के टोल नाके पर एकदम से मर� आख� खुल� तो देखा चार� तरफ गा�ड़य� क� कतार लगी थी। सब एकदूसर े
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से आग �नकलने क� होड़ म लग थे। फर�वाले अपने सामान� से लोग� को आक�षर्त करना चाह रहे थे, बच्चे अपने
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माता �पता से �खलौन� क� िज़द कर रहे थे। म�न अपने साथ बठे दादाजी क� तरफ देखा, जो अभी भी मीठ� सी
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झपक� ले रहे थे।
पापा गाड़ी चला रहे थे और मम्मी अपने टैब पर क ु छ देख रह� थीं। दोन� थोड़ गभीर लग रहे थे, आपस म धीमी
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आवाज़ म एक दूसरे से बात� कर रहे थे पर यह ध्यान रख रहे थे क� दादाजी को परेशानी न हो और उनक� नींद
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ख़राब न हो।
हम पहाड़� से आज लौट रहे थे जहाँ दादाजी का घर था। पहाड़� क� हर� भर� वा�दय� म दादाजी के घर छ ु ट्�टया ं
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�बतान के �लए जाना हमशा से ह� एक सुखद अनुभू�त होती थी। वहा जात ह� पापा गढ़वाल� गाना गुनगुनाने
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लगते और मम्मी घर के कामो म लग जातीं, पर साथ रहकर हम सब बहत मज़े करते और वापस
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आना मरे �लए पीड़ादायक होता था, हमशा म� यह� सोचता था क� कै स पापा मम्मी को मना लूँ और
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दादाजी के साथ वह� पहाड़� पर रहने लगूँ!
पर इस बार क� यात्रा थोड़ी अलग थी। एक तो हम अचानक ह� जाना पड़ गया था ऊपर से िजस �दन हम
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�दल्ल� से �नकल थे उससे एक �दन पहले रात म दादाजी ने पापा को फोन �कया तो उनक� आवाज़
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थक� हई सी लग रह� थी जैस उन्ह� बोलन म भी तकल�फ हो रह� हो, साथ ह� पापा क� आवाज़ और
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चेहरे पर भी �चंता साफ़ झलक रह� थी। पापा उन्ह� अपन साथ �दल्ल� लाना चाह रहे थे और दादाजी
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अपनी पहाड़ के जीवन से बहार नह� �नकलना चाह रहे थे पर उनक� शार��रक अवस्था �दन प्र�त �दन
�बगड़ती जा रह� रह� थी, अब उनको वहा अके ला छोड़ना पापा मम्मी के �लए नामुम�कन हो रहा था!
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