Page 4 - डी एन ए और पदचिन्ह
P. 4

उम्र के  साथ साथ वह अपनी चीज़� को भूलते जा रहे थे। भूलता तो म� भी हँ! जैस स्क ू ल म प�सल बॉक्स या �फर
                                                                                        �
                                                                                         �
                                                                                े
                                                                           ू
               पानी का बोतल! परन्तु दादाजी का भूलना थोड़ा अलग था, वे उन चीज़� को भूलने लग थे जो हमशा से ह� उन्ह�
                                                                                               े
                                                                                      े
               पता था जैस अ�र, शब्द, या �कसी का नाम!  उनके  हाथ और उंग�लया उनके  न चाहने पर भी �हलने लगती थीं,
                                                                         ं
                         े
                                                                                                     े
                                                                  �
                                                                ं
                                         े
               और अगर चलने के  �लए उठत तो पैर उलट� सीधी �दशाओ म पड़ने लगते। कभी कभी उनके  �घसटत और
               लहराते हए पैर नीचे रखे हए सामान� से टकराकर चीज़� को �गरा देत और उन्ह� श�म�दगी का एहसास
                                                                             े
                       ु
                                       ु
               कराते।
                                                  े
               उस रात दादाजी का फोन यह� बतान के  �लए आया �क अब समय आ गया था जब उन्ह� अके ला
                                                                   ै
               नह� छोड़ा जा सकता था, मम्मी पापा ने उसी समय अट�चयाँ लगायी और हम सब दादाजी के  गांव
                   ं
                                                                              ं
                                 े
                                                  ं
               के  �लए �नकल पड़ थे। मम्मी ने वहा दादाजी का सारा सामान भरना और बा�क सामान� का रख
               रखाव शुरू कर �दया था और पापा दादाजी को उनके  नात �रश्तदार� से �मलवान के  �लए ले जा रहे
                                                                         े
                                                                                        े
                                                                    े
                                                �
               थे। म� मम्मी के  आड़े �तरछे काम� म रुकावट बन रहा था (वैसे ये आरोप �सरे से गलत था!) तो मुझे
               पापा और दादाजी के  साथ भेज �दया जा रहा था।
               ज्यादातर समय मेरा ध्यान �दए गए नमक�न �बिस्कट� पर होता था और साथ म अगर �कसी के  घर खेलने के
                                                                                  �
               �लए बच्चे �मल जात तो म� ख़ुशी ख़ुशी उनके  साथ लूडो खेलन बैठ जाता, बड़ आपस म क्या बात� करते थे इसम म�
                                                                 े
                                े
                                                                                    �
                                                                            े
                                                                                                       �
               ध्यान नह� देता था। पर जब म� अपने बड़ दादाजी के  घर गया तो बड़ा ह� मज़ेदार �कस्सा हआ। बात दरअसल यह
                                                े
                        ं
                                                                                       ु
               थी �क बड़ दादाजी ने अपने घर का एक �हस्सा अ�त�थ गृह म बदल �दया था, वहा छोट -बड़ शहर� से लोग, क ु छ
                        े
                                                                                      े
                                                                                  ं
                                                                 �
                                                                                          े
               �दन� के  �लए �बश्राम करने आत थे साथ ह� पहाड़� �क स्वच्छ खुल� हवा का आनद भी लेते थे।
                                         े
                                                                               ं
                                                                      ं
                                        �
               �पछले साल �क छ ु ट्�टय� म तो म� डॉक्टर� और व्यवसा�यओ से �मला था जो जात समय दोस्त बन
                                                                                          े
               जाया करते थे, पर इसबार अ�त�थ गृह म रहने के  �लए एक दल व�ा�नक आये हए थे, म� वै�ा�नक�
                                                                            ै
                                                    �
                                                                                         ु
               से पहले कभी नह� �मला था, ज़ा�हर सी बात है �क उत्सुकता अपने चरम पर थी क्य��क ट�वी पर वे
                                ं
                             �
               कायर्क्रम  िजनम  व�ा�नक  ह�रो  होत  ह�  वह  म�  बड़  ह�  उत्साह  और  उल्लास  से  देखता  हँ!  �वलुप्त
                                ै
                                                              े
                                                े
                                                                                                  ू
   1   2   3   4   5   6   7   8   9