Page 4 - Prayas Magazine
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निर राजभाषा कायाषड़वयन सचमचत (बैंक ) जलड़धर











                                                             संपादक की कलम से ..........


          सवषप्रर्म आप सभी को मेरा नमस्कार,

          चहड़दी  भाषा क े  चवकास में पत्र-पचत्रकाओं क े  योिदान का इचतहास काफी पुराना एव िौरवशाली है।
                                                                                                ं

                                                                     ं
          आज क े  समय में जबचक अचभव्यचि क े  अनेक माध्यम एव मि िारों  तरफ मौजूद हैं और चकसी भी
                                                                        ं

          लेखक क े  पास अपनी रिनाएूँ प्रकाचशत करने क े  चवकल्पों की भी कोई कमी नहीं रह िई है, तो ऐसे

                                                                                                           ं
          में यह प्रश्न उठना स्वाभाचवक है चक एक और पचत्रका क्यों? इसक े  उिर क े  ऱूप में मैं 'चिराि तले अधेरा'

                                                                                ं

          वाले मुहावरे का चजक्र करना िाहिी। अचभव्यचि क े  माध्यम और मिों की उपलधधता ने कई िीजें
                                             ं

          आसान तो की हैं, लेचकन अपने साइि इफ े क्ट्स क े  सार्। मसलन स्माटष फोन और सोशल मीचिया क े

          जमाने में बड़ी हो रही युवा पीढ़ी चहदी भाषा की मूल चलचप भूलकर उसे रोमन में चलखने को अभ्यस्त
                                             ं

          होती जा रही है। ठीक इसी तजष पर अपनी भाषा क े  मानक व्याकरण आचद क े  ज्ञान क े  मामले में भी वह

          पतनोड़मुख चदखाई दे रहे हैं। उनकी रिनात्मक अचभव्यचि में भी चकसी मुकम्मल रिना क े  चलए

                                              ं
          जऱूरी कथ्यों-तथ्यों क े  स्र्ान पर तुरत वाहवाही लूटने क े  उद्देश्य से प्रेररत या सनसनी जैसी िीजों का
          समावेश देखने को चमल रहा है।

          ऐसे में पुरानी प्रबधात्मक रीचत में सपाचदत पचत्रकाओं की भूचमका हमारी भाषा तर्ा उसमें रचित साचहत्य
                          ं
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          क े  मानक स्वऱूप को अक्षुडण रखने क े  चलहाज से अत्यत महत्वपूणष है।
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          निर राजभाषा कायाषड़वयन सचमचत (बैंक), जलड़धर की पचत्रका “प्रयास “ क े  माध्यम से हमारे सदस्य

          बैंकों क े   युवा विष को भाषा से जोड़कर उनकी रिनात्मक प्रचतभा को सबक े  समक्ष प्रस्तुत करने का
                                                                                        ं
                                                                                                             ं
          एक छोटा-सा प्रयास चकया जा रहा हैं। हमें  उम्मीद है चक प्रयास का यह नवम अक आपको जऱूर पसद
          आएिा। हमें आपक े  सुझावों की प्रतीक्षा रहेिी।

          सधड़यवाद,



          सररता

          सदस्य सचिव
          बैंक ,निर राजभाषा कायाषड़वयन सचमचत, जलड़धर




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