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ह
-वै वी
दसव - 'ब'
एक डोर म सबको को ह ब धती
वह हद ह,
हर भाषा क सागी बहन जो मानती
वह हद ह।
भरी-पूरी हो सभी बो लय
यह कामना हद ह,
गहरी हो पहचान आपसी
यह साधन हद ह,
सौत िवदशी रह न रानी
यह भावना हद ह।
त म, त व, दश िवदशी
सब रंगो को अपनाती,
जैसे आप बोलना चाह
वह मधुर, वह म भाती ,
नए अथ क प धारती
हर दश क माट पर ,
'खाली - पीली - बोम - मारती '
बंबई क चौपाट पर,
चौरंगी से चली नवेली
ी त- पयासी हद ह,
बहुत-बहुत तुम हमको लगती
‘भालो-बाशी’, हद ह।
उ वग क य अं ेज़ी
हद जन क बोली ह,
वग -भेद को ख़ करेगी
हद वह हमजोली ह,
ँ
सागर म मलती धाराए
हद सबक संगम ह,
श , नाद, ल प से भी आगे
एक भरोसा अनुपम ह,
गंगा कावेरी क धारा
साथ मलाती हद ह,
पूरब-प म/ कमल-पंखुरी
सेतु बनाती हद ह।