Page 35 - Epatrika2020_KV2 AFA HYD
P. 35

-16-

        ह


                                                                                                          -वै वी
                                                                                                        दसव - 'ब'
       एक डोर म  सबको को ह ब धती


       वह  हद  ह,

       हर भाषा क  सागी बहन जो मानती


       वह  हद  ह।
       भरी-पूरी हो सभी बो लय
       यह  कामना  हद  ह,


       गहरी हो पहचान आपसी


       यह साधन  हद  ह,
       सौत िवदशी रह न रानी


       यह  भावना  हद  ह।




       त म, त व, दश िवदशी
       सब रंगो को अपनाती,
       जैसे आप बोलना चाह
       वह  मधुर, वह  म  भाती ,

       नए अथ  क  प धारती

       हर  दश क  माट  पर ,
       'खाली - पीली - बोम - मारती '
       बंबई क  चौपाट  पर,

       चौरंगी से चली नवेली


        ी त- पयासी  हद  ह,
       बहुत-बहुत तुम हमको लगती


       ‘भालो-बाशी’,  हद  ह।
       उ  वग  क    य अं ेज़ी


        हद  जन क  बोली ह,
       वग -भेद को ख़  करेगी
        हद  वह हमजोली ह,


                              ँ
       सागर म   मलती धाराए


        हद  सबक  संगम ह,
       श , नाद,  ल प से भी आगे

       एक भरोसा अनुपम ह,
       गंगा कावेरी क  धारा

       साथ  मलाती  हद  ह,

       पूरब-प  म/ कमल-पंखुरी

       सेतु बनाती  हद  ह।
   30   31   32   33   34   35   36   37   38   39   40