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क त क लीला ारी !!
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- करण कमार पंजा
दसव अ
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क त क लीला ारी,
कह बरसता पानी, बहती निदय ,
कह उफनता समं ह,
तो कह श त सरोवर ह।
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क त का प अनोखा कभी,
कभी चलती साए-साए हवा,
तो कभी मौन हो जाती,
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क त क लीला ारी ह।
कभी गगन नीला, लाल, पीला हो जाता ह,
तो कभी काले-सफद बादल से घर जाता ह,
क त क लीला ारी ह।
ृ
कभी सूरज रोशनी से जग रोशन करता ह,
तो कभी अं धयारी रात म च द तारे िटम िटमाते ह,
ृ
क त क लीला ारी ह।
कभी सुखी धरा धूल उड़ती ह,
तो कभी ह रयाली क चादर ओढ़ लेती ह,
क त क लीला ारी ह।
ृ
कह सूरज एक कोने म छ ु पता ह,
तो दूसरे कोने से नकलकर च का दता ह,
ृ
क त क लीला ारी ह ।