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       सरदार व भ भाई पटल
                                                                                           ​
                                                                                            - ो ना रानी नायक
                                                                                                                       १० "अ ''

       लौह पु ष क  ऐसी छिव

       ना दखी ,ना सोची कभी
       आवाज़ म   स ह सी दहाड़ थी
        दय म  कोमलता क  पुकार थी

                             एकता का   प जो इसने रचा
                             दश का मान च  पलभर म  बदला

                             गरीब  का सरदार था वो

                             दु न  क  लए लोहा था वो
                             आंधी क  तरह बहता गया

        ालामुखी-सा धधकता गया

       बनकर ग धी क  अ हसा का श
       महकता गया िव  म  जैसे कोई  हा

       इ तहास क ग लयारे खोजते ह  जसे


                             ऐसे सरदार पटल अब ना

                              मलते पूरे िव  म ।।
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