Page 12 - Ashtavakra Geeta
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हमारा है| ज्ञानी क े कलए तो िारी िकनया का राजा इद्रा िवता भी झुकता है| ज्ञानी की इज्जत िि परिि में है,
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ये परम पि है, इिक कलए तपस्या करनी पड़गी| हवाई जहाज की िीढ़ी चढ़ गए और कफर िीढ़ी हिा िी तो
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िोबारा उतर नहीीं िकत, वि ही माया की भी िीढ़ी चली गयी अब कि उतरोग| ज्ञान क े रास्त में पाव रखक
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अगर पीछ हिगा, तो तम्हार जिा बिरम आिमी कोई और नहीीं होगा| वापि तम्हार कलए कोई इज्जत नहीीं है
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िकनया में|
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मन अपना ही जाल बनक बठा है, जो जगत बनाया है वो है ही नहीीं, मन तम्हार ित्ता िे ही प्रगि होता
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है, कफर फ़ज़ धरम duty मन का झुिा drama है| न तू करता है न तू भोगता है| तम िव व्यापी है| ये िह तो
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हि वाली है| ये जीव पररछन है, ब्रह्म िवव्यापी है| इि बधन में पड़कर अपन को जीव जानकार ििर को दृिा
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िमझता है| भगवान को अपन िे अलग कर किया|
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जीव अपनी माया क े अधीन होक और करम का करता मानक, अपन को फल का भोगन वाला
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िमझता है| भगवान फल भी नहीीं िता, कतापन भी नहीीं िता और न ही कम बनाएगा| जीव करता पान में
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बीज बोता है और उिी क े अनिार उिको फल कमलता है| अज्ञान की वजह िे कहत है, मैं करता हाँ, मैं
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भोगता हाँ, िाकी दृिा तो भगवान है| पर तम खि ही िाकी दृिा हो, प्रकािक हो, तम ही आत्मा हो, कोई
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third person भगवान नहीीं है, तम ही भगवान है| अपन अहकार को जानन वाला ये जीव अल्पज्ञ है और तम
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आत्मा िवज्ञ है| िव क े अन्दर जान्न वाला, मैं हाँ आत्मा| कतापन क े िाप तम्हार े गल में पड़ा हुआ है| अभी मैं
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नहीीं करता हाँ, ऐिा कवश्वाि रखक अज़र अमर हो जाओ और िरीर िे अलग हो जाओ| गरु तम्हारा वकील है,
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कहता है Judge क े िामन कबलना नहीीं, मकर जाओ, अपना िोष अपन में नहीीं कहना बि, बाकी िब
वकील का काम है||