Page 7 - Ashtavakra Geeta
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होनी चाकहय, ज्ञान िे| एक भी इछॎछा है, तो वराग्य नहीीं ले िकगा| इि मन को क्तखलाक पहनाक भी किखाओ
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कक क्या कमला, और अपन अन्दर को वराग्य किलाओ इि ज्ञान िे, और वाणी ऐिी चलेगी कक जब अन्दर घि
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जाएगी तो तमको जरुर वराग्य आ जायगा| जबरिस्ती जो रोकगा उिक अन्दर कबमारी होएगी और कजिकी
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वकत िहज िात हो जाएगी, तो वो है वराग्य| ज्ञानी कर, न कर है स्वाथ क े किवाए| कमठाई खाया, तो ठीक,
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नहीीं खाया तो ठीक है| इछॎछा और अकनछॎछा, त्याग और ग्रहण िे ज्ञानी पर है; ब्रह्मज्ञानी का िहज स्वभाव है|
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इछॎछा को जबरिस्ती रोकगा, तो भी वािना रह जाएगी, और अगर इछॎछा कोई बहुत ही बपरवाही िे भोगगा तो
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भी इछॎछा रह जाएगी, और भी बढ़ जाएगी| वराग्य है break; मन को break िो; इतना खाया इतना कपया, क्या
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िाक्ति आई?; क्या इछॎछा परी हुई? या इछॎछा और बढ़ गयी? तो अपन िे ही घणा आएगी| और कजज्ञाि को अगर
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वराग्य होगा तो उिका आप ही छिगा, ककिी क े कहन पे नहीीं छिगा| एक भी वािना रह गयी तो बर में कीड़ा
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बनक आएगा|