Page 2 - Ashtavakra Geeta
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Astawakra Geeta 001-002
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गरु ने पहल ही पहल, कवल आत्मा कक दृकि किष्य को किया - आत्मा कनराकार है, आत्मा कोई लम्बा छोड़ा
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नहीीं है, नीच ऊपर नहीीं है, जहा तहा है ही भगवान| भक्ति, करम, पजा नहीीं किखाया| ककिी को भी िरीर
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कर िखा तो तम चमार है| ककिी को भी िखा क्या िखा| गरु का काम है कवल आत्मा में किकाना| जगत
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क्या है, ब्रह्म क्या है| माया क्या है| भगवन क्या है – तभी िमझगा जब तम आत्मा में किकगा| आत्मा पश्यक्ति
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आत्मा| तम आत्मा में है, तो आत्मा ही आत्मा किखाई िगी, तम िह में है, तो िह ही िह किखायी िगा| िह
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अध्यािी बड़ में बड़ा पाप है, आतम दृकि बड़ में बड़ा पण्य है| आत्मा क े िमझ क े पहल जो भी ककया, उिका
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क्या नतीजा कनकला - कवल नरक और स्वग| गरु कबन माला फरत, गरु कबन िव िान, गरु कबन िान हराम
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है, कहत वि पराण| कजि िाकत क े कलए इतन व्रत कनयम ककया उिका क्या फल कनकला? गरु क े किवा व्रत
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कनयम रखोग तो िाकत नहीीं कमलगी| द्वत िे करम और द्वत कक भक्ति ककया तो उिि और भी अहकार बढ़
गया|
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ये ऐब दृकि कि जाय? ऐब िरीर में था या आत्मा में था? ककिी को िखक हिी उधात है; तो कत्त कक तरह
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ििरा िेखता है और भोकना िऱू करता है| जगत ऱूपी आरिी में िखक गरु कहता है कक मैं ही तो हाँ; मैं
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ककतना िन्दर हाँ; िबको आत्मा करक िखता है| आत्मा कनत्य है, िब कवकार िरीर में, और िरीर अकनत्य है|
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जि निी क े िढ-मढ होन िे निी का पानी िढ़ा मढ़ा नहीीं होता है| इिी तरह िे मकिर िढ़ा मढ़ा है पर उिम े
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आकाि जो है वो िढ़ा मिा नहीीं है| MODERN WORLD DOES NOT KNOW ABOUT AATMA. पड़न कलखन े
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िे तनख्वा बड़ी होगी; पर मन में िाक्ति नहीीं आएगी| कजिन भगवान को पाया है, तो वो चमार भी तमि बड़ा
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है| िच्च गरु का काम है, पहल ही किन आत्मा में किका िता है, ििरा उिका कोई काम नहीीं है| आत्मा कक
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दृकि तमको िगा पहल ही किन| कजिको इि ज्ञान में interest लगा, उिको करम काड भक्ति िीखन कक
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जरुरत नहीीं| एक ही आत्मा जान्न िे उिकी िच्ची भक्ति िऱू हो जाएगी, िबको आत्मा करक िखगा और
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ककिी िे उिका राग द्वष ही नहीीं होगा, ककिी का ऐब नहीीं िखगा, आत्मा िखन िे पाच कवकार ही चला
जाएगा, जो िालो कक तपस्या िे भी नहीीं हो िकता है| ये ज्ञान ऐिा है कक वािना रह नहीीं िकती है| कजिन े
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आत्मा को जाना, वो कभी कवकार में नहीीं जाएगा| वो कवकारी िरीर को िखगा भी नहीीं| नाही अपन को िरीर
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िमझगा, नाही ििर को। आत्माकार एक ही बच जाएगा, बाकी िारी िकनया कगर जाएगी। क्योींकक िह अध्यािी
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ऋकष मकन त्यागी वरागी िब को माया ने मस्त ककया। त्याग कछ भी नहीीं करना, कवल पहचानना है कक मैं कौन
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ह। मैं आत्मा ह। अगर पहचाना तो automatically इि िरीर का त्याग हो गया। अगर तमन िरीर नहीीं िखा,
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आत्मा िखा तो तम बच जाएगा इि माया िे, इन कवकारोीं ि। िह अध्यािी नहीीं भी कर, तो कर।
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ज्ञान िे तम्हारा िहज ही िकल्प-कवकल्प िात हो जाता ह। जि-जि तम्हार अिर ज्ञान जाएगा, वि-वि े
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तम्हारा ख्याल िात होता जाएगा thoughtless हो जाएगा। ना past ना future, present में िब में आत्मा ही
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आत्मा िखता ह। पहल-पहल आत्मा की दृकि कमलगी अभी तम जगत को कमथ्या िमझगा और पाचोीं कवकार
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गायब हो जाएगा, खाली जागना है । जागन में ककतना time लगता है? गरु जगाता है कफर िो जाता है| पर गरु
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कहता है िजाग होक रहो| नीींि में नहीीं रहो; अभी तक नीींि में ही थे| जि घािलि और पानी mix ककया तो
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ज्योत फड-फड करती है जलती नहीीं है| वि ही िरीर और आत्मा mix ककया, तो तम्हारा मन का िीपक
जलता ही नहीीं है|
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कजिन आत्मा को नहीीं जाना है, वो बिर है, मनष्य भी नहीीं है| घरवाला और घरवाली कजिक मन में
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बिा हुआ है, क्या वो कजज्ञाि या मोमोक्श हुआ| ककिी और क े िधरन कक कामना नहीीं रखो| कजज्ञाि की
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क्तथथकत क े कहिाब िे गरु ज्ञान िता है – कजिको वराग्य ही नहीीं है, उिको वराग्य िगा; कजिको वराग्य है िच्चा
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उिको ज्ञान िगा; कजिको ज्ञान है उिको मक्ति िगा| कवल जनम मरण िे कि मि हो जाय| ये ही िवाल
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है रजा जनक का| वराग्य िे ज्ञान| ज्ञान िे मक्ति होती है| रजा जनक का तीनो ही िवाल मोमक्श का है –
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मोक्ष कक इछॎछा करन वाला कजज्ञाि ऐिा िवाल पछता है| बाकी जो मड / अज्ञानी लोग पछत है मैं कि िखी
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रह, िख िपकत्त कि आय| अज्ञानी स्वग क े पीछ भागता है| जो मोमक्श होता है उिकी िाड़ी िकनया जल