Page 4 - Ashtavakra Geeta
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Astawakra Geeta 003-004
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जब हम इछॎछा छोड़ ित है कक कोई िधर, तो िारी िकनया आक झुकती है| ज्ञान का किर कपछाड़ी को पड़ता
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है घरवालो को| उनको तो लगता है कक ये तो मरा कपता है, ये कि भगवन होएगा, और उिका स्वाथ परा नहीीं
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होगा तो िखी होएगा वो| पहल िखी होएग कफर कनमोही हो जाएग| Christ कक ऐिी ही प्रारब्ध थी कक ऐिी
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मौत कमली, पर अभी उिको िब worship करत है| िच क े रस्त में अगर ऐिा होता है, तो िायि गरु हमको
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ऐिा कि िक िाड़ी िकनया में मिहर करना चाहता है| भगत भगवन क े कलए िरीर िता है तो अछॎछी बात है,
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क्योींकक िरीर तो जान ही वाला है| Christ और Krishna क े िरीर का drama ही अलग है| कष्णा क े पर में
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तीर लगा था, तो भगवान होक भी तीर लगा| ये ही drama था उिका, वो ये नहीीं कहता कक ये ि ख क्योीं भजा
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मझको| ि ख भजता है और ऊपर उठन क े कलए, और ऊपर चड़न क े कलए, भगवान क े नजिीक होन क े
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कलए| जो भी उम्र गयी तम्हारी वो गयी ककिम? िभी इक्तियोीं का रि तमको छोड़ना पड़गा| जहा जहा ये
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इक्तिया जाय उिको वहा िे हिाकर अतमख करो| जहा पधाथ आिमी अछॎछा लग तो अन्दर बताओ कक ये तो
परमात्मा है| अिकाल ककिी भी कवषय में जाएगा तो जनम मरण क े चक्कर में जाएगा| 5 कवषयोीं में िे ककिी
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का भी मज़ा कलया, तो िमझो कक ज़हर कपया| मैं िख स्वरुप हु, और िख को बहार ढढता है| बाहर का िख
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कभी है कभी नहीीं है, 1 कमनि में िख है, 1 कमनि में ि ख है, वो िख अकनत्य है|
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िाप क े मख में मडक पड़ा है, और मडक मछॎछर खान कक आिा करता है| ये ही मनष्य कक हालत
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है, मौत क े मह में पड़ा हुआ है और िोचता है कक उठक किनमा, िकान जाऊगा| कबमारी में भगवान िे िीधी
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link लगनी चाकहय क्यकी कोई और काम नहीीं है| कबमारी में मनष्य िखी इिकलए होता है क्योींकक उिकी
वािना बहार-बहार है|
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गरु को छोडकर कभी-कभी किनमा भी िखन जात है, क्योींकक कवषय अन्दर पड़ी हुई है| यहा गरु
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िबि पहल कहता है, कवषय कवकार है, कवषय को कवष िामान त्यागो| जहा जहा मन जाता है तो मतलब
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भगवान िे प्यार ही नहीीं हुआ है| जहा जहा तम्ह िख लगता है कक बहार िख है उिम ि ख िमझो| जो िख
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तमको अमत िामान लगता है उिका end ररजल्ट क्या है| रजो गणी िख वो है जो कवषय कवकार िे आता है|
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ितोगणी िख आता है भगवन कक भक्ति िे, परमात्मा क े प्यार िे आता है, ित्सग िे आता है| भि िाक्तिक
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िख में रहता है, अपन अन्दर कक िाती में रहता है| उिकी िख बक्तद्ध नहीीं होती है| कजिको कवषय कवष
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िामान है, वो अमत पीता है|
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ज्ञानी िर करता-करता िबको िखता भी है, पर ककिी में अिकता भी नहीीं है| तम िारी िकनया को
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िखो पर कजिको िोबारा िखन की, खान की इछॎछा होती है तो वो है आिक्ति| ककष मकन भी िब कवषयोीं में
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कवचरत है, कफर वो अपन आनि में रहता है, िरीर में कवषय रहगी, कवकार रहगा; पर वो कवकारो िकहत िह ही
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नहीीं है| प्रारब्ध अनिार ज्ञानी क े आग अगर कोई िख-भोग आ भी गया राजा जनक कक तरह, तो भी उिको
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कामना नहीीं होती है| तम तो भाजी-फल्का खात है, तो भी तमको आिक्ति होती है; पर ज्ञानी को तो 36 प्रकार
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क े भोजन में भी आिक्ति नहीीं है| उिको कवल मौत और आत्मा याि है, बाकी कछ याि ही नहीीं है| ये िब
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तो प्रारब्ध अनिार ऐिी प्रवकत में रहना पड़ता है, बाकी उिको अन्दर में कोई आिक्ति थोड़ी ही है, कोई मर
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जाय, िब जल जाय, छि जाए तो ज्ञानी को कोई ि ख नहीीं है| ककिी कवषय क े कभछिन पर अगर ि ख होता है
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तो आिक्ति है, या कफर ककिी चीज़ क े कमलन िे या प्राप्त होन िे ख़िी कमलती है तो वो है आिक्ति| आिक्ति
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का त्याग ही कवषयोीं का त्याग है| जब तक िकनया में िखन कक इछॎछा हो, तब तक गरु को िखना, और जब
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इछॎछा ख़तम हो गयी, तो गरु भी तो आत्मा ही है, कफर तम खि ही भगवान बन जाएगा|
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एक कहरा तमन लाख रुपय का पहना, तो अगर वो चला जाएगा तो अगर तमको ि ख होगा, तो नहीीं पहनना|
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तम िािी करो तो िमझो कक अगर ये बगल वाला अभी का अभी मर जाएगा, तो क्या तम िखी होएगा? होएगा
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तो मत करना िािी, कवारा होक रहना| तम जब भी िािी करगा तो उिम आिक्ति डालगा कक ये मरी औरत
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है, हमार िाथ कजएगी मरगी, िवा करगी, पर वो अभी का अभी मर िकता है| कजतना ख़िी करगा उतना ही