Page 8 - Ashtavakra Geeta
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Astawakra Geeta 007-008
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जि िरीर क े बाहर खाल है वि ही िरीर क े अन्दर आकाि है और वाय श्वाि, अकि जत्रािी है, और पिीना
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पिाब िब जल है, मॉि िरीर कपड धरती है| आकाि, वाय, अकि, जल, पिी – ये पाच ही ति तम नहीीं है|
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इि पाच ति का िाकी िखन वाला ऩॎयारा, आकािवत जि तम आत्मा है, िक्ति है| जो आत्मा है, वो तू है,
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िरीर नहीीं है| अगर अपन को िरीर करक िखा, पाच ति करक िखा, तो तम मि नहीीं होगा, तम िरीर में
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ही फिा हुआ रहगा| लककन मैं ये पाच ति का िरीर नहीीं हाँ, िाकी आत्मा हाँ, ऐिा िमझन िे, ऐिा अनभव
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होन िे ही तम मि होगा| आत्मा का गण िरीर में, और िरीर का गण आत्मा में आ गया, इिकलए मनष्य िह
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अध्यािी होक िह की बात आत्मा िे लाग करता है, और आत्मा की बात िह िे| हर एक मनष्य को मरना
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पिि नहीीं है, क्योींकक तम्हारी आत्मा अमर है; स्वाभाकवक तम अमर है इिकलए तम मरना नहीीं चाहता है|
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आत्मा राजाओ का राजा है, िबि श्रष्ठ है; इिकलए इछॎछा होती है कक मैं भी कछ बन| बनन कक चाह क्योीं होती
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है? क्योींकक तम्हारी आत्मा िबि बड़ी, िबि श्रष्ठ है, इिकलए तम कम होना नहीीं पिि करगा, ज्यािा होना
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पिि करगा, inferior होना पिि नहीीं करगा, superior होना ही पिि है| िारी िकनया, ऋकष मकन, ज्ञानी
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ध्यानी आत्मा की इज्जत करता है, क्योींकी तम्हारी आत्मा इज्जत क े लायक है, तम्हारी आत्मा ईमानिार है| ये है
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आत्मा का गण िरीर में लाना और तम िरीर में होक कहता है कक मरा मान होना चाकहय, मैं नहीीं मऱू, मैं
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िबि बड़ा रह| तमको कोई भी िोष लगाएगा, तो तम कहगा कक मैं right हाँ, मैं कनिोष हाँ, क्योींकक आत्मा
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तम्हारी right है, आत्मा तम्हारी कनिोष है| िरीर तो िोषी है पर तम िरीर में रहक, आत्मा का गण िह में
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लगता है| ये तािात्मय िबध जो हो गया है, इिमें एक भल हो गयी है, कक िरीर का गण आत्मा में और आत्मा
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का गण िरीर में लगता है| अभी जब गरु कमलता है तो आत्मा और िरीर को अलग-अलग करता है| िरीर
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का गण िोष िरीर को कियो, और आत्मा जो कनकवकार है, उि कनकवकारी में ही रहो| तम आत्मा होक रहो -
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िाकी कनकवकारी कनिोष; जिा तम है ज्यो का त्योीं अपन को जानो; और िरीर को भी ज्यो का त्योीं जानो कक ये
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िरीर कवनािी है| िरीर को तम अलग कर िो आत्मा िे, िरीर तम्हारा पड़ोिी है| िरीर िे तम्हारा कोई
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वास्ता ही नहीीं है| तीनो ही कालो में तम िरीर नहीीं है| तो तमको कबमारी ि ख मरना जीना touch नहीीं करगा,
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आत्मा में कछ भी नहीीं है| अज्ञान कक वजह िे आत्मा और िह अलग नहीीं हुई है, अपन को िह िमझ क े बठा
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है| अभी अज्ञान जाएगा ज्ञान िे, नाहीीं कमो िे, नाहीीं भक्ति िे, नाहीीं द्वत िे, न कोई िािन िे, लककन जि े
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अधरा जाता है रौिनी िे, वि ही अज्ञान जाएगा ज्ञान िे|
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तीनो कालो में मैं िह ही नहीीं हाँ, िह िे मरा कोई वास्ता ही नहीीं है| िह का ि ख िख, मरा ि ख िख
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नहीीं है, िह का जनम मरण, मरा जनम मरण नहीीं है, िह का आना जाना मरा आना जाना नहीीं है| आत्मा ना
ही आता है, ना ही जाता है| िरीर का आना जाना इि आत्मा में क्योीं मानता है? मैं आत्मा हाँ, मैं ििा हाँ ही हाँ,
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जहा तहा हाँ ही हाँ, कहा िे आया हाँ, ककधर जाऊगा, मैं िवत्र हाँ, ऐिा तमको कनश्चय होना चाकहय| ककिन े
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जनम कलया, और कौन मरगा? तम कौन है? िह अध्याि मन अधर में रस्सी को िाप िमझना, अज्ञान की वजह
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िे हम अपन को (आत्मा को) िह िमझक बठ गय है, wrong को right| जि रस्सी नहीीं िाप िखन में आता
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है, वि ही आत्मा नहीीं िह (िरीर) िखन में आता है| अब जब ज्ञान हुआ तो कफर आत्मा में वापि आ जाओ|
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जि रस्सी को गौर िे िखा तो िाप का भ्रम चला गया, वि ही ज्ञान िे अपन को ज्यो का त्योीं आत्मा जाना तो
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िह का भ्रम चला जाएगा| कफर िरीर का धरम आत्मा में नहीीं कमलगा|
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एक ही भगवान, एक िे अनक होकर आया है| जि राजा िपन में अपन को भगी िमझन लगा, भगी
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की dress पहनकर बठ गया| जब उठा तो realise ककया कक मैं तो राजा हाँ| इिी तरह िे माया का निा
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तमको लग गया, कजि किन तमन िरीर धारण ककया| जब कनराकार िे िाकार में आया, िरीर धारण ककया तो
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ये भल हो गया, कत्रगणी माया िे mix होकर जब ये िह धारण ककया तो ये माया का निा चढ़ गया हर एक क े
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ऊपर| तो हर एक अपन को राजा िे भगी िमझन लगा, कक मैं तो पापी, गन्दा, मैं फलाना; राजा का लड़का
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िपन में खिको जि कनधन जान, राजस्वर तम मोह निा में खि को िक्तखया जान| अभी जब तमको ज्ञान की
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खिाई क्तखलाई, तो तम्हारा निा उतार गया कक मैं क्या था और क्या होक बठ गया| *15.20*|