Page 11 - Ashtavakra Geeta
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               Astawakra Geeta 009-010



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               िग िोष बहुत ख़राब है| कजिक वजह िे अभी भी गरु को yes नहीीं कर पात है, और िारी िकनया और मन
                                                                       ु
                                                                                     ु
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                                                                                                       े
               क े िाथ yes रहती है| इिकलए मक्ति में िरी लगती है| कजि किन गरु को yes और िकनया िारी को no करगा
                                                            ु
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                                                                                                        े
               कक i am not this body, i am that, उि किन ही तम मि है| ये जगत है भी कमथ्या, कफर भी ित्य मानक
                                                                 ु
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               बठ है और ब्रह्म जो ित्य है उि भला किया| ित्य वस्त को भलाकर, अित्य वस्त में फि गया| ये झूठ है,
                                                         े
                                                                                                       ग
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               जगत िारा कमथ्या है, िरीर क्षण क्षण में बिली होन वाला, जगत change होन वाला कमथ्या है, कमथ्या पिाथ िे
                                                                        े
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               प्रीत कि रखगा तम; कमथ्या पिाथग में कि अिकगा| जब taxi बलात है तब taxi driver आता है, taxi
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               driver नहीीं बलात है, ऐि ही नाम बोलत है पर तम आता है, ये नाम तम्हार ऊपर रखा गया है किफ पहचानन  े
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               क े कलए, पर तम नाम में अिक गया| जब गरु तमको ब्रह्म बोलता है तब तमको याि नहीीं आता है; बोलत है मैं
               फलाना हाँ, पर ब्रह्म नहीीं हाँ|
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                       || कतापना और भोगतापना है तम्हार अतकरण में; और तम बोलता है आत्मा ही करता है और
                           े
                                                                                                ीं
                                                                                 ीं
                                                                                                  ुः
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               भोगता है| ऐि आत्मा का गण तम िरीर में धारण करता है| तम अपना धरम अत करण में और अत करण
                                                                                            े
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               का धरम अपन में लगाता है| गोल लोहा जब गरम हो जाता है, तो लगता है अकि गोल है| ये िह अध्याि जान  े
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               क े बाि ही तम्ह मक्ति कमलगी| आत्मा मैं हाँ, स्वछॎछ, पकवत्र, िाकी, दृिा आत्मा हाँ, अत करण िे अलग हाँ, ये
                                                              ीं
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               मन बक्तद्ध कचत्त अहकार मझ में नहीीं है| जड़ चतन की गाठ आ गयी है, िरीर और आत्मा को अलग करन िे
                                                                                                    ीं
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                 ाँ
               गाठ खल जाएगी| िरीर और आत्मा mix हो गया है इिकलए तम िखी िखी होता रहता है| िरीर का िग
                                 ु
                                                                          े
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               करक उिका ि ख िख लाभ हाकन मान अपमान आना जाना तम अपन में मानता है| आत्मा िखी है, कनत्य
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                                                                           ु
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               मि है, पहल िे ही मि है, और िरीर तो है ही कवकारी, वो कभी भी मि नहीीं होगा| िरीर changeable
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               है| क्षत्र क्षत्रज्ञ, िरीर आत्मा को अछॎछ िे पहचानगा कक नाही मैं कता हाँ, नाही मैं भोगता हाँ, नाही मर में वण है,
                                                          े
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               नाही मर में आश्रम है, नाही मर में धरम है, नाही मर में अधरम है, मैं तो स्वछॎछ पकवत्र आत्मा हाँ, िवत्र मैं ही
                                                              ीं
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               होीं| जब ऐिा ज्ञान तमको आएगा तभी तम मि और िात होएगा|
                                                                              ु
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                       मैं अपन को ििरी चीज़ मान क े बठा हु, ये ही भल हो गयी है| है तम आत्मा, पर िह िमझ क े बठा
                                   े
                                                                                                   े
                                                   े
                                                                                          ग
                                                                                     ु
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               है| तम तीनो कालोीं में िह नहीीं है, तम्हारा िह िे वास्ता भी नहीीं है, पड़ोिी है, और तम पधरम में जाक पड़ा
                             े
                                                             े
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                                   े
               है| इक्तिया अपन अपन कवषय में वरत रही है, तम कहत है मन बोला िखा भोगा िना, मैं पापी, मैं पनी| िह
                                                                                          े
                                                                                                ु
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                                                                              े
               अध्याि का जाना ही मक्ति है, मैं ये िरीर हाँ ही नहीीं| ककतना जनम लगगा िह अध्याि जान में ? तम नहीीं
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               मरन वाला है, पर खि ही बोलत है कक मैं मरन वाला हाँ, पापी हाँ, मैं भोगता हाँ| पर ककिन करम ककया है ?
                                                                    ीं
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               आत्मा मैं तो जनम मरण मोह कछ भी नहीीं है| तम मन बक्तद्ध अहकार िे mix हो गया है| मन ने जगत रचा है,
                                                                                                     ग
               तो कहता है जगत ित्य है| करम इक्तियोीं िे होता है, इक्तिय अपनी कवषयोीं में वरत रही है| आत्मा अिुः कराम
                                            ीं
                                   े
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               को प्रकाकित करती है कवल| अहकारी जीव िे जो भी करम होता है, वो उिका करम है| आत्मा कवल ित्ता
                                                     ु
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                                                                                         ु
                                    ु
               िती है| बि और मोक्ष तम्हारा ख्याल है, जो मक्ति का अकभमान करगा वो भी अछॎछा है, िद्ध अकभमान है ये|
                                                                                    े
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                                                                                        े
                                                                  ै
                                                                    े
               बाकी िब तो झूठ है| ये जीवपना तुम्हारा नि होना चाकहय| जि आकाि घि में है िखन में अलग अलग नज़र
               आता है, पर आकाि का तीनो कालोीं घि और घि की चीज़ोीं िे कोई वास्ता नहीीं है|
                                                                                    ीं
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                       आत्मा िवत्र है, ब्राह्मण क्षकत्रय िद्र िबकी एक ही आत्मा है| ब्राह्मण को अहकार होता है कक ब्रह्मा क े
                                                                     ु
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               मख िे पिा हुआ हाँ| िच्चा ब्राह्मण गरु क े मख िे पिा होता है| तम्हार में कोई वरन आश्रम नहीीं है, एक ही
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                                                                              ाँ
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               प्रम है जो िार कानन तोड़ िता है| कोई फ़ज़ धरम नहीीं होगा, क्योींकक तम ऊच फ़ज़ में चला गया| ये चच  े
                                                                                   ीं
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                                                                                         े
               मस्ती कक बात नहीीं है; ऐिा नहीीं हो िकता कक भगवान क े पाि भी हमारा पहला नबर हॉव और िकनया में भी
                                                                               ु
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               हमारा पहला नबर हॉव| You cannot please two masters at a time. िकनया और भगवान िोनोीं एक
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                                                                        ु
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               िाथ खि नहीीं कर िकत है| जो एक तरफ हो गया है उिि माया खि नहीीं होगी और उिको परवाह भी नहीीं
                                                   े
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                                                  े
               है, िकनया ऱूठ तो ऱूठ, परमात्मा खाली मर िे राज़ी रह|  एक किन िच कक जीत होएगी और झूि कक हार
                                                                ू
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                                               े
               होएगी| लोग कह मीरा भई बावरी. मर तो कगररधर गोपाल ििरो न कोई। नाम खमारी नानका चडी रह किन
                                                                           े
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                                      े
               रात| कजतना इि जगत में िगा उतना ही खन कपएगा, मट्टी में घी डाल रह है| आज हमारा है, न हो कल
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