Page 9 - Ashtavakra Geeta
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िल्तानोीं का िल्तान था, नौकर बनकर बठा है इधर| मैं बधन में हाँ, मैं स्त्ी हाँ, मैं अबला हाँ, मरको खानको
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नहीीं है – ऐिा कहन वाली स्त्ी आज कहती है मैं आत्मा हाँ, मरको ककिीकी परवाह नहीीं है, ककिीकी जरुरत
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नहीीं है, कजिका मि नहीीं है उिको मि कक जरुरत नहीीं है, कजिको बिा नहीीं है उिको बि कक जरुरत नहीीं
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है, हमारा िब कछ भगवान है| ये अज्ञान की वजह िे अपन को कनबल कनधन िमझत थे, वो िमझत थे कक वो
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अकल है, ििार िागर में गोिा खा रह है; जब उिको गरु कमल गया, तो उिन हाथ िक ििार िागर िे
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बाहर कनकाल कलया| ज्ञान आ गया अिर में स्मकत आ गयी अन्दर में, कक मैं आत्मा हाँ, मरको िब िक्ति है, मैं
भगवान हाँ|
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िाक्षात भगवान िखना अनभव करना, ये ज्ञान िे ही होता है| अपनी स्मकत आ गयी कक मैं ही आत्मा
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हाँ, तो िह िे अध्याि कनकल गया| गरु िह का भ्रम, जगत का भ्रम, िख का भ्रम का कचिठा फाड़ क े फ़क
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िगा| तम अकला नहीीं है, पकत परमात्मा तम्हार िाथ है, और आक्तत्मक िक्ति आ जाती है| तो िह का ि ख
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िख अपन में नहीीं मानगा, जनम मरण कबमारी अपन में नहीीं मानगा| िह को अलग करो आत्मा को अलग
करो|
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बोलता है कक जब मैं बच्चा था तो ऐि करता था, जब मैं जवान हुआ तो ऐि करता था, जब मैं बिा हाँ
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तो ऐि करता हाँ| पर तम्हारी मैं तो बिली नहीीं हुई| मैं तो िाखी है, अनभव करन वाली मैं, वो
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unchangeable है, बाकी तम्हारा िरीर change होता गया, हालात change होती गयी| हालातोीं को िखन े
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वाला, अनभव करन वाला आत्मा िामान है, हमिा िम है, दृिा है िखन वाला है| नाही िरीर की इक्तिया,
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नाही िरीर क े कवषय िब जिा है तम्हार िे| वोही मैं चलती रहती है तम्हारी, कक मैं बढा था मैं मऱूगा मरा
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अगला जनम कौनिा होगा, लककन तम वो मैं िरीर िे लगात हो, पर वो है आत्मा की| गरु किष्य को िरीर िे
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ऊपर करता है िबि पहल कक तम पाच ति का िरीर नहीीं है, कनकवकारी है| तम कभी जनम मरण में नहीीं
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आता है, जनमता मरता भी िरीर है, तम नहीीं मरता है|
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हरक अपना िाखी खि है, अपन मन इक्तियोीं िह का िाखी है, आत्मा है| तम अपना िाकी खि है,
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तरी करम कहानी तरी आत्मा ही जान परमात्मा ही जान| तम्हारी आत्मा ब्रह्म ऱूप है| तम्हारी आत्मा ही
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परमात्मा है| िबकी आत्मा तम्हारी आत्मा है, ये है परमात्मा| ये आत्मा परम पकवत्र है, और िबकी आत्मा मरी
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आत्मा है – ये िमझन वाला बोलता है, मैं परमात्मा हाँ| िबम आत्मा िखना िवत्र| बि िमानी िागर में ये जान े
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िब कोए और िागर िमानी बि में ये जान कवरला कोए, िारा ही िमि बि में िमाया पड़ा है| िबकी आत्मा
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अपनी आत्मा िमझन वाला ही परमात्मा िमझ िकता है| ज्ञानी िखता है ये िब मैं हाँ, जगत है ही नहीीं| तम
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कहता है जगत भी है, मैं जगत का दृिा हाँ, जगत को िखता हाँ| जब तक जगत किखाई िता है, तो परमात्मा
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का ििन नहीीं होगा| जहा तक जाती दृकि है, जहा तक फली िकि है िव मम ऱूप है| िब मरा ही ऱूप है, ये
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िब मैं ही आत्मा परमात्मा एक ही हाँ| िब में व्यापक हाँ, िवत्र मैं ही हाँ आत्मा| जि अपन को प्यार करता है
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वि ही िव क े कलए प्यार उठगा, तभी परमत्मा का ििन होता है| जि अपना िाखी है तो कफर िव का िाखी
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हुआ| जब तक मैं अलग - तम अलग करगा, अलग अलग आत्मा करगा तो परमात्मा नहीीं िखगा| जब अपन े
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में आत्मा िखा, तो िामन कहा िे बिा आया, िव में आत्मा ही आत्मा है| िवत्र आत्मा िखनवाला ही परमात्मा
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का अनभव करता, जो अपन िह में मारा गारा रहता है वो परमात्मा को कि जानगा| िहाध्याि छोडो, मिका
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तोड़ो तो अन्दर बाहर पानी; जल में कम्भ, कम्भ में जल, बाहर भीतर पानी, कवक्ष्ो कम्भ जल माकह िमायो, ये
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गत कवरल जानी| जो अपन को िह नहीीं जानता है, वो अन्दर बाहर ब्रह्म, एको ब्रह्म कद्वत्य नाक्तस्त| ब्रह्म ही ब्रह्म
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रह जाएगा| He who does not bear the cross, will not wear the crown| जो अपन िरीर को cross
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नहीीं िहगा तो वो भगवान नहीीं कहलाएगा| जीत जी िह अध्याि नहीीं छिगा, तो काल घिीिक लक जाएगा|
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ज्ञानी हि हि फ़ािी िहता है, वो लिकाया नहीीं जाता, िाप कक तरह अपनी खाल जीत जी उतार िता है|
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अभी का अभी तम बिल िकता है, अगर अभी अपन तो जान लो बि| नीींि खलन में एक second
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लगता है| िालो जप तप कक जरुरत नहीीं है, मक्ति क े कलए| अभी िह अध्याि छोडक अपन को आत्मा जानो,
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कनश्चय करो बि कक तम आत्मा है| कनश्चय में िरी कौनिी है| ककिी ने पछा ककिी ब्रह्म िे ज्यािा िह अध्याि
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जोर है क्या, कक ब्रह्म भल जाती है| बताया अगर िार लोग तम्ह बोल कक िाप है तो तम पीछ हि जाओग, पर