Page 6 - Ashtavakra Geeta
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               Astawakra Geeta 005-006



                   ग
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                     ै
               किफ वराग्य ही कनिोष िे भरा हुआ है – खली िखो वराग्य िे, छोडो नहीीं बाहर िे, खली िखो कक ये आज है
                                                                                        ृ
                                                                   ु
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               पर कल नहीीं भी हो िकता है| ये िो कमनि का िख है, कफर ि ख िऱू हो जाता है, अतक्तप्त, अिाकत,
                                      ैं
                                                                   े
                                                                                                 े
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                                                                  े
               बकरारी; जो इक्तियोीं को खच होती है, बलात्कर घिीि कर लक जाती है| ककिी क े मरत time रोत है,
                                                               ीं
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               क्योींकक उिि िे िख कमलता था| िख तो िक गया, पर कगला, अधा बना क े भी गया, उिी िख कवकार में
                      े
                                                                                        ु
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               तम अध है, और उिी िख को याि करत है, परमात्मा क े िख को नहीीं याि करत है| गरु जब िरीर
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               छोड़कर जाता है, तो िर किवोहम बनाकर जाता है, गरु जब अतध्यान होता है, तो और भी राजाई िकर जाता
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                                                       ्
               है और िक्ति िकर जाता है| िच्चा पकत भगवान ही है| जब तक जीव और आत्मा अलग नहीीं हुआ है, तो तब
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                                                          ु
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               तक तो िब ि ख िख िब भािगा| इिकलए कजज्ञाि को घोर तप नहीीं करना चाकहय| माग क े खाना िच्चा
                 ै
               वराग्य नहीीं है|
                                                   े
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               जड़ भारत ने कपछल जनम में कहरनी क े बच्च िे प्यार ककया था, तो उिक मोह में जब मर गया, तो तीन जनम
                                                                 ग
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               कहरनी का लना पड़ा| जब तीन जन्मो बाि मनुष्य योनी में गभ में आया, तो उिको याि आया कक कहरनी क े
                                                                                                      ृ
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               बच्च िे मोह करन क े कारण उिको कहरन क े 3 जनम कमल| पिा होन क े बाि भी उिको इि बात कक स्मकत
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               थी, इिकलए वो हमिा ऩॎयारा - ऩॎयारा रहता था – अकला रहता था, ककिी व्यवहार में नहीीं पड़ता था, खान में,
                    े
               कपड में. कवषय, कवकार में उिका मन ही नहीीं था| क्योींकक उिको डर था कक कही मैं कफर िे ककिी चीज़ में
                                        ै
               न फाि जाऊ| पर वो िच्चा वराग्य नहीीं है, वो डर कक वजाह िे ऐिा रहता था| आिक्ति का त्यागी िच्चा
                          ीं
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               वराग्य है| माग क े खाना, जगल में घमना ये िब झूठा वराग्य है| जब तक िरीर और आत्मा mix है, तब तक
                                                                                       े
                                                                               े
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               ि ख है| आत्मा िािन रकहत है, बाहर िे कछ भी करन कक जरुरत नहीीं है, कवल अपन को जानो कक मैं कौन
                                                          े
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               हाँ| तम जहा है, वहा ही आत्मा है| आत्मा को जानन क े कलए, कछ भी ग्रहण और त्याग है ही नहीीं|
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               ितगरु िे भय उपज, भय ते कनभय होइए, पाइए मोक्ष द्वार| गरु आता है तो भय तम्हार अन्दर पिा करता है|
                                                                                ु
                                                                 ु
               कभी नरक का भय, कभी 84 लाख योनी का डर किखा क े तम्हारा पाप करम छड़ाता है| वो तभी होता है जब
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                                                                े
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               तम्ह हर जगह गरु क े िख लन का डर हो| गरु भय किखाक ही कनभय बनता है, आत्मा में किकता है और कफर
                                                              े
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               मोक्ष का द्वार खोल िता है| जो िह और आत्मा अलग करगा उिको क्या ककिी िािन कक जरुरत पड़गी? मैं
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               िह नहीीं तो ििार भी नहीीं है, मैं आत्मा हाँ, तो ििार जगिीि है|
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               िािन: िरलता ही िािन है, आत्मा का| मन वाणी िे पर ये जो आत्मा है, वो बहुत भारी है, िमझ में नहीीं
                                                               ु
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               आएगी अगर मगज़ खाली होगा| इिकलए खाना, पीना, तिरुस्ती िब ठीक रखो अपनी| कोई भी इछॎछा,
                                                               े
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               आिक्ति नहीीं होनी चाकहय, बाकी बाहर का किखावा करत हो तो अहकार और अकभमान ही बढ़गा| तम्हारा
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                                                                                  ै
                 ु
               कछ था ही नहीीं तो त्याग क्या ककया? तम परमात्मा की चीज़ को अपना िमझ क े बठ गया, परमात्मा कक चीज़
                                                                                           े
                                                                              ीं
                                                                   े
                                                                             ीं
                                                                                                 ु
               को वापि नहीीं ककया तो अमानत में खयानत डाल किया| कजिन िरीर िे िबि छोड़ा, उिन िारी िकनया िे
                                        ु
                                    े
               िम्बन्ध छोड़ किया, कक मरा कछ भी नहीीं है|
                                                                     े
                                                                              ीं
                                                                                           े
                                                                       ीं
                                                                                        े
                                             ु
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                                                                                          े
                                                     ु
               अन्दर बाहर कक पकवत्रता, और जो तम्हारी तिरुस्ती को ठीक लग, ठडी में ठडी क े कपड पहनना| बाहर िे
                                                   ु
                                            ै
                                    ाँ
                                                                 ाँ
                                                                                                        े
               कपड़ा नहीीं छोड़ना है| लगोिी में बठा िाध को भी अपनी लगोिी में इछॎछा होती है, राजा जनक क े पाि खान,
                   े
                        े
                                    ग
                                                                                                ै
                                                          े
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                                                                           ृ
               पीन भोगन क े िब पिाथ है, पर उिको कमथ्या करक िखता है| अगर तक्तप्त नहीीं है अन्दर में, तो वराग्य भी
                                ु
                        ु
               नहीीं है| गरु अगर कछ कायिा बना िे और बहार िे भय वि रुक भी गया, तो भी अन्दर इछॎछा रह जाएगी;
                                                 ु
                              े
                                       ु
                                                                                                    े
               वािना रह न जाय इिकलए गरु ने आज कछ भी मना नहीीं ककया, कक ऐिा करना या ऐिा नहीीं करना| लककन
                                  ै
                         ु
                                                                 ै
                                                                      ृ
                                                                                                  ृ
               ज्ञान ऐिा िनाया कक वराग्य automatically आ जाता है| वराग्य वथी उत्पन तब होगी, जब अन्दर तक्तप्त
                                                                                             ीं
                                                                                                 ु
                                                                            ृ
                                       ीं
                                             े
                                                                                         ीं
                                                                                      े
               होगी| िहज ही अगर इछॎछाए न उठ, िहज स्वाभाव ही अगर ककिी कक वकत ठहर जाय, रग, ढग, िकनया
                                                       ु
                          े
                                         ै
                                                                                   ु
               अछॎछी न लग, तो वो है िच्चा वराग्य| अपना अनभव अगर नहीीं होगा, तो कफर िे िकनया की चीज़ोीं में मज़ा
                               ै
                                     ृ
                                                                               े
                                                                    े
               आएगा| कजिको वराग्य वकत है, उिको अगर िािी क े कलए बोलगा भी तो कहगा NO| ज्ञान कजिको पक्का है
                                                                                                      ै
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                                                                                           ृ
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                                            े
               उिकी प्रारब्ध| कजिको वराग्य लगगा उिको खाना, पीना, िोना िब ज़हर लगगा| वराग्य वकत अन्दर िे पिा
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