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पिवत्र आ�ा प्र�क ��� को
अलग-अलग वरदान देता है।
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कु छ के पास �ान की बातों का वरदान, कु छ िश�ा दे सकत ह�, कु छ को चंगाई देन े
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का वरदान, कु छ को िवशष प्रकार के िव�ास का वरदान, कु छ को साम� के काम
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िदखान का वरदान, कु छ को उपदश देन की साम� दी गई है और कु छ को अ�
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भाषाओं म� बोलन की साम� दी गई है जो उ�ोंन कभी सीखी ही नहीं थी।
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अब -- म त��
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सबस उ�म
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माग बताता
�ँ।
अगर म� अ�-अ�
भाषाओं म� बोल सकता
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�ँ लिकन दसरों से प्रेम
नहीं करता �ँ तो - म�
िसफ शोर कर रहा �ँ।
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अगर म� भिव� के िवषय म जानता
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�ँ लिकन दसरों से प्रेम नहीं करता,
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तो इसस �ा फायदा होगा?
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अगर मुझम� पहाड़ों को हटा देन का भी िव�ास हो, प्रेम ब�त धीरजवत और कपाल होता है, कभी ई�ा या डाह
लिकन प्रेम न रख तो इसका कोई मतलब नहीं होता। नहीं करता, कभी घमंड या बड़ाई नहीं करता, कभी भी
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यिद म� अपना सब कु छ गरीबों को दे दूँ और ससमाचार प्रचार के अिभमानी या �ाथ� या अस� नहीं होता।
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कारण अपनी देह को िजदा जलान के िलए दे दूँ पर� दसरों से प्रेम प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता है। वह
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न रख, तो इसका कोई मू� नहीं होगा। झु ँझलाता नहीं या ज�ी ग�ा नहीं करता है।
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वह बैर-भाव नहीं रखता है और इस
बात पर शायद ही �ान दे, जब दू सर े
उसक साथ गलत कर। �
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जब म� एक ब�ा था तो म� एक
ब�े की तरह ही बोलता था
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और तक� करता था लिकन िफर
म� एक सयाना पु�ष बन गया
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तो उसक बाद बचकाना रा�ा
अपन पीछ छोड़ िदया।
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तीन चीज ह� जो �स्थर
रहती ह� - िव�ास,
आशा और प्रेम - और
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इनम से सबस बड़ा
प्रेम है।
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