Page 8 - Navvihaan 2021 10-9-21
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अशमत क   मार
                                         कनिष्ठ ह िंदी अि वादक












                                                   उपभोक्तावाद  की जजीरों में जकड़ा   आदमी,
                                                                       िं
                                                                                       ै
                                                        े
                                                सिंपदा क पीछ भागत-भागते दम तोड़ता   आदमी |
                                                                                         ै
                                                                    े
                                                             े
                                                     इच्छाए  ैं अििंत और वक्त की भरी कमी,
                                                           िं
                                                “और अधिक” की  ोड में स ख-चैि समलता  ी ि ीिं |




                                                                         े
                                                        ै
                                            अब  ालत   य  कक अपिों क सलए वक्त समलता  ी ि ीिं ,
                                                                  ँ
                                                                                   िं
                                                                                                  िं
                                              आणखर आवश्यकताए ककतिी  ैं कक अत  ोती  ी ि ी |
                                                                                 िं
                                              एक वक्त ऐसा भी था कक उमिंगें थी जीवि में असीम ,
                                                                     े
                                                                                      ै
                                                  अब तो अवसादों स नघरता जा र ा   आदमी |



                                                                                              े
                                         आज उपभोक्तावाद बि गया   पयािय मािव जीवि क लक्ष्य का,
                                                                       ै
                                                                                 े
                                                                                          े
                                              मािव ि ख द  ी घोटा   गला अपि जीवि क  षि का |
                                                      े
                                                                      ै
                                                                                           े
                                                        ै
                                            अब वक्त   कक ऐ मािव प चाि करो जीवि क लक्ष्य का,
                                       बा र निकलो क्षिभिंग रता स और उदघाटि करो जीवि क र स्य का |
                                                                                              े
                                                                  े


                                               करो क   छ ऐसा जग में की छोड़ जाओ अपिा निशाि,


                                                    कमि करो ऐसा की याद याद कर सारा ज ाँ |
                                                                                  े

                                                                   *********







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