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P. 47

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                                                                                  े
                                                                                                         7
                          े
               का  बाहर  क  पदाथw  पर  आरोपण  करता  ह।  इस      +ाLणय' क> दह गहर म Pवकास$#मक dप म एक
                                                       ै
                                                                                                       ै
                                                        ै
               मनोवै_ा%नक  9$या  का  +योजन  यह  होता  ह  9क     दूसर  से  जुड़ी  हई  ~ृंखलाओं  क>  तरह  ह।  इस
                                                                    े
                                                                                ु
               वह जो आरोपण ह वह उस व तु से अलहदा हो             ~ृंखला  म  एक  को#शक>य  जीव  पहले  हg  और
                                                                         7
                                 ै
               कर    आLखरकार  जब  लौटता  ह,  तब  मनुMय  को      मनुMय  जैसे  बहकोशीय  ज1टल  संरचना  वाले  जीव
                                             ै
                                                                              ु
               अपने  व क> +ािyत होती ह। यह  वयं को जानने        आLखर! सीढ़! पर हg।
                                        ै
               क>  एक  +9$या  ह  जहां  मनुMय  क  भीतर  क>       भारतीय  दश न'  म  इसे  चेतना  क  Pवकास$म  क>
                                 ै
                                                 े
                                                                                              े
                                                                                7
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               +क ृ %त, पहले  वयं को बाहर क पदाथ  पर + ेPपत     तरह  दखा  गया  ह।  इसी#लए  ई`वर  क  Pव#भSन
                                                                                 ै
                                                                                                    े
                                                                       े
                                                ै
               करती ह, 9फर जब वह यह दखती ह 9क बाहर का           अवतार'  क  dप  म  भी  जैव  अवतार'  को  एक
                                          े
                       ै
                                                                                  7
                                                                          े
               पदाथ  उसक> आंतKरक +क ृ %त क मुता5बक Dयवहार       #सल#सले क> तरह + तुत 9कया गया ह। वे डाPव न
                                            े
                                                                                                   ै
               नह!ं  करता,  तब  उसे  अपनी  आंतKरक  +क ृ %त  एक
                                                                                                            g
                                                                 े
                                                                क Pवकास $म से क ु छ हद तक मेल खा जाते ह,
                      े
               तरह क छायाभास क> तरह वाPपस लौटती +तीत            परतु हमार यहां Pवकास को बाहर क> +क ृ %त और
                                                                  ं
                                                                         े
               होती ह। इस तरह मनुMय बाहर! +क ृ %त क ज़Kरए        जीवो  क>  दह  क>  +क ृ %त  क  $#मक  Pवकास  क>
                      ै
                                                      े
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               आLखरकार  अपनी  छाया  को   वयं  म  समा1हत         तरह ह! नह!ं दखा गया, अPपतु यह माना गया 9क
                                                                              े
               करक, अपने आप को जानने क और कर!ब होता             यह सब चेतना क Pव#भSन  तर' म $#मक dप
                                            े
                   े
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                      ै
               जाता ह।                                          से  Pवक#सत  होते  जान  का  पKरणाम  होता  ह।
                                                                                                            ै
                                                                                      े
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               पि`चम  क  Pवचारक'  क>  यह   िMट  उनक  इस         सुषुyत अव था से जागृत अव था क> ओर आती
                                                                                                        े
                                  ै
                                                                                                             े
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               Pवचार से जुड़ी हई ह 9क बाहर क> +क ृ %त म कोई      हई  चेतना  PवPवध  +कार  क>  +ाणीगत  दह'  स
                                                                 ु
                              ु
               मानवीय  अंतर-संरचना  मौजूद  नह!ं  होती।  जब9क    होकर  अपना  सफर  तय  करती  हई  आLखरकार
                                                                                                 ु
               भारत क दश न +क ृ %त को भी जीPवत व तु मानते       मनुMय तक पहचती ह।
                                                                             ं
                                                                                   ै
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                               7
               हg।  वे  +क ृ %त  म  मनुMय  जैसी  चेतना  का  संचार   इसका  अथ   यह  ह  9क  +क ृ %त  को  पूजने  का  वह
                                                                                 ै
                 े
               दखते  हg।  वे  कवल  इतना  कहते  हg  9क  बाहर  क>   +योजन  नह!ं  ह  िजसे  पि`चम  क  दाश %नक  यह
                             े
                                                                              ै
                                                                                               े
                                           े
               +क ृ %त म मनुMय क> चेतना क समान जो उसक>          कहकर खाKरज करते हg 9क भारत क लोग +क ृ %त
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                                                                                                 े
                                                           ै
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               अपनी  चेतना  ह,  वह  सुषुyत  अव था  म  होती  ह।   को अपने वश म करने म असमथ  होने क कारण
                              ै
                                                                                                      े
                                                                                       7
                                                                               7
               मनुMय म वह चेतना  जागृत ि थ%त म आ जाती           उसक  सामन  घुटन  टकते  हए  1दखाई  दते  हg।  व
                        7
                                                   7
                                                                    े
                                                                                                     े
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                                                                                    े
                                                                                                             े
                                                                           े
                                                                                          ु
               ह।  जड़  पदाथw  से  लकर  मनुMय  तक  चेतना  का     कहते  हg  9क  जब  +क ृ %त  को  वै_ा%नक  dप  स
                                   े
                 ै
                                                                                                             े
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               Pवकास  PवPवध  +ाLणय'  क  लंबे  इ%तहास  वाल       जीतना संभव नह!ं होता, तब ह! मनुMय +क ृ %त क
                                                                                                             े
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               Pवकास  $म  क  |वारा  होता  ह।  इसे  व  चौरासी    सामने दास' या भ&त' क> तरह Uगड़Uगराया करता
               लाख  यो%नय'  तक  चलने  वाले  सफर  क>  तरह        ह।  यह  जो   िMटकोण  ह  इसे  हम  एंगेnज़  और
                                                                 ै
                                                                                       ै
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               दखते हg।                                         मा&स  जैसे महान पि`चमी दाश %नक' क Uचंतन म
                                                                                                   े
                                                                                                             7
                                                                                     ं
                                                                     े
               पि`चम  म  डाPव न  ने  िजस  Pवकास  $म  को         भी  दख  सकते  हg।  परतु  जो  बात  पि`चम  समझ
                         7
                                                            े
               वै_ा%नक #सWांत क> तरह हमार सामने रखा, उसक        नह!ं पाता ह वह यह ह 9क हमार यहां +क ृ %त क>
                                                                           ै
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               पीछ  उसक>  यह  सोच  1दखाई  दती  ह  9क  सभी       और उसक PवPवध dप' क> जो पूजा ह, वह +क ृ %त
                                              े
                                                                                                   ै
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               मई – जुलाई                             47                                                                   लोक ह ता र
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