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इSह भारतीय Uचंतन म मनुMय क> Uच?तगत ऊपर हमने मनुMय और +क ृ %त क बीच क एक
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Pवक ृ %त का नाम 1दया गया ह। 1हंसा, लोभ, अहकार, तीसर संबंध dप क> चचा भी क> थी। इसे हम
ईMया , |वेष आ1द +वृि?तय' को भारतीय Uचंतन म भारतीय Uचंतन धाराओं म +क ृ %त और पुkष, अथवा
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मानवUच?त क Pवकार' क> तरह दखा गया ह। पदाथ और चेतना क जोड़' क dप म मौजूद पाते
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मनुMय क> मूल +क ृ %त तभी सामने आती ह, जब हg। #शव और शि&त क dप म पुkष और +क ृ %त
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इन Pवक ृ %तय' स मनुMय अपने आप को अलहदा का यह जोड़ा, भारतीय Uचंतन परपरा म, #मथक
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कर पाता ह। आ{यान' क> तरह अ&सर 1दखाई दता ह। बाहर!
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इस तरह दखा जाए तो पि`चमी Uचंतन और +क ृ %त क> ओर से दखा जाए तो बात उसक>
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भारतीय Uचंतन म सतह! dप म दूर! अव`य सामlय और शि&त क> ह, परतु य1द हम आंतKरक
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1दखाई दती ह, परतु गहराई म इन दोन' +कार क> +क ृ %त क> %नगाह स दखते हg तो बात चेतना क
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Uचंतन पW%तय' क> मंिज़ल एक ह! +तीत होती ह। #शव?व क> हो जाती ह। इस तरह दो तरह क>
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वह मंिजल ह 9क कसे मानव समाज को उसक> पर पर Pवरोधी मालूम पढ़ने वाल! Pवचारधाराए
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मूल +क ृ %त को,या बाहर! +क ृ %त क व थ और एक दूसर से संबंUधत होने क माग पर चल दती
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नैसUग क Pवकास को उपलhध 9कया जा सकता ह। हg। इस #शव शि&त वाल #मथक म पMट 1दखाई
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दता ह 9क गहराई म यह पर पर पूरक होन क>
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+क ृ %त म मानवीय त?व' को दखना य1द आदश
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ि थ%त ह। इस म #शव ह! अUधक मह?वपूण नह!ं
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Pवचारधारा का +क ृ %त पर आरोपण ह, तो यह तो
ह, +क ृ %त भी अनेक थल' पर अपनी ऐसी
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माना ह! जा सकता ह 9क +क ृ %त भी गहराई म
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अ#भDयि&त करती 1दखाई दती ह जहां हम #शवा
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जीवन को जSम दने वाल! संरचनाओं क> ओर
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को #शव क व थल पर अपने पैर रखकर नाचते
अंतPव कास करती ह। य1द हम +क ृ %त क इस
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हए दखते हg। इस +कार दोन' क बीच +ेम,
जीवनमूnक प को क\ म ला सक तो भारतीय
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पर परता और पूरक अंतPव रोध को संतु#लत और
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और पि`चमी दश न' क बीच क> दूर! को बहत हद संबंUधत बनाए रखने क> चेतना क\ म आ जाती
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तक कम 9कया जा सकता ह।
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दह मूलक िMटकोण दो तरह क हो सकते ह, परतु
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इस Pवचारधारा को हमार समय म और अUधक
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जीवन को लेकर य दोन' िMटकोण एक धरातल
Pवक#सत करने तथा +ासंUगक बनाने क> ज़dरत
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पर आकर एक दूसर क पूरक होने लगते हg।
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ह। अब +क ृ %त क दोहन शोषण क पKरणाम
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बाहर! +क ृ %त क भीतर स जीवन जSम लेता ह
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वdप, उसक गभ से +कट होने वाल! Pवक ृ %त क
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और Pवकास करता ह, तो दूसर! तरफ आंतKरक
तांडव को हम अपनी आंख' क सामने +कट होता
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+क ृ %त क भीतर जीवन क वे dप होते हg जो उस
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दख रह हg।
बाहर! +क ृ %त क साथ तालमेल रखने और उसक
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साथ एक पूरक क> तरह जीवन जीने क> ओर ल ऐसे म +क ृ %त और मनुMय क> आपसदार! क #लए
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हम नई तरह क अथ तं6 और नई तरह क>
जाते हg।
मई – जुलाई 50 लोक ह ता र