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                                                                      ं
               दखो ..... ह ना मेर! हालत पागल' जैसी।             रोक लू या 9फर जाने दूं उसे ?.....
                          ै
               बताओ......
                                                                                          स*पक : 9463215168
                                                                                              '




                लघुकथा


                                                            तड़प


                            े
                                                                                                 7
                          घर क वृW मुLखया Pपछले तीन साल से चारपाई पर थे। वे कह!ं भी आ-जा पाने म असमथ  थे।
                                                                                               े
                                                            े
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                कई 1दन' से वे अपन बेट और पोत' से कह रह थे 9क मरने से पहले वे अपने खेत दखना चाहते हg।
                आज तो व एकदम अड़ ह! गए। आLख़र पोते उSह ऊटगाड़ी पर बैठाकर खेत ले आए। खेत म सब
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                                                                                                        7
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                                                                      े
                तरफ़  धूसर  रत थी,  हKरयाल!  का  नामो%नशान  नह!ं था।  दखते  ह!  वृW  लगभग  कराह  उठ,  "ये  सार!
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                                                                                                  े
                                                                                                      े
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                ज़मीन बंजर &य' पड़ी ह, तुमने क ु छ बोया &य' नह!ं?" पोते चुप थे। उSह पता था 9क दादा क भीतर
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                                                                                                 े
                एक हरा-भरा खेत ह और दादा अपने भीतर क उसी हर भर खेत को अपनी ज़मीन पर दखने क #लए
                                  ै
                Dय– हg। इसी#लए वे लगातार टालते आ रह थे।
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                          "तुम बोलते &य' नह!ं?"
                          "&या बोल दादा जी, एक पोते क मुँह से बोल फ ू टा, "दो साल स बाKरश नह!ं हई, नहर म
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                                                                                                   ु
                पानी नह!ं आता, बुआई कसे होती? पीने का पानी भी मुि`कल से #मल पा रहा ह।"
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                                                                                          े
                          दादा बहत दर यूँ चुप बने रह जैसे अचानक गूँगे हो गए ह', 9फर बोल, "मुझे संतोष ह 9क
                                                      े
                                                                                                         ै
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                                                                                                            े
                                                                                                           े
                         े
                मg पानी क पूर! तरह ख़?म हो जाने से पहले दु%नया से चला जाऊगा ले9कन अगर दु%नया को छोड़ दन
                                                                           ँ
                क बाद भी कोई dह अमर रह जाती ह तो मेर! dह अपनी संतान' क> UचSता म हमेशा तड़पती रहगी।"
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                                                                            - हरभगवान चावला
                                                                          406 से&टर 20 हडा #सरसा
                                                                                          ु
                                                                          9354545440

               मई – जुलाई                             80                                                                   लोक ह ता र
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