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दखो ..... ह ना मेर! हालत पागल' जैसी। रोक लू या 9फर जाने दूं उसे ?.....
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बताओ......
स*पक : 9463215168
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लघुकथा
तड़प
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घर क वृW मुLखया Pपछले तीन साल से चारपाई पर थे। वे कह!ं भी आ-जा पाने म असमथ थे।
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कई 1दन' से वे अपन बेट और पोत' से कह रह थे 9क मरने से पहले वे अपने खेत दखना चाहते हg।
आज तो व एकदम अड़ ह! गए। आLख़र पोते उSह ऊटगाड़ी पर बैठाकर खेत ले आए। खेत म सब
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तरफ़ धूसर रत थी, हKरयाल! का नामो%नशान नह!ं था। दखते ह! वृW लगभग कराह उठ, "ये सार!
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ज़मीन बंजर &य' पड़ी ह, तुमने क ु छ बोया &य' नह!ं?" पोते चुप थे। उSह पता था 9क दादा क भीतर
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एक हरा-भरा खेत ह और दादा अपने भीतर क उसी हर भर खेत को अपनी ज़मीन पर दखने क #लए
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Dय हg। इसी#लए वे लगातार टालते आ रह थे।
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"तुम बोलते &य' नह!ं?"
"&या बोल दादा जी, एक पोते क मुँह से बोल फ ू टा, "दो साल स बाKरश नह!ं हई, नहर म
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पानी नह!ं आता, बुआई कसे होती? पीने का पानी भी मुि`कल से #मल पा रहा ह।"
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दादा बहत दर यूँ चुप बने रह जैसे अचानक गूँगे हो गए ह', 9फर बोल, "मुझे संतोष ह 9क
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मg पानी क पूर! तरह ख़?म हो जाने से पहले दु%नया से चला जाऊगा ले9कन अगर दु%नया को छोड़ दन
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क बाद भी कोई dह अमर रह जाती ह तो मेर! dह अपनी संतान' क> UचSता म हमेशा तड़पती रहगी।"
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- हरभगवान चावला
406 से&टर 20 हडा #सरसा
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9354545440
मई – जुलाई 80 लोक ह ता र