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               #लया मेरा क ु छ। इSतजार कर अब बैठकर। िजस         सोच को। पर सा1हर क सम  क ु छ भी नह!ं कर
               1दन क ु छ ‘उतार’ #लया उस 1दन बताना।”             पाई थी मg।
                                  े
                                                                                  ै
                       मg  सा1हर  क  पास  कभी  Pववेक  का  नाम          “मुझे  डर  ह  9क  कह!ं  सा1हर  yयार  ह!  न
               नह!ं लेती। बेशक अब भी बात करती ह मg उससे।        करने लग जाए मुझे।”
                                                   ं
                                                   ू
                                                    े
                                                                                               7
               पता  नह!ं  ऐसा  &या  कह  1दया  था  Pववक  ने  9क         एक 1दन मज़ाक-मज़ाक म कहा था मgने।
               सा1हर.....।                                             सा1हर खामोश हो गया। 9फर बड़ी गJभीर
                                                            े
                                                        े
                       “ऐसा  सोचा  मत  करो  पगल!।  आपक  बार     आवाज म बोला।
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               म कोई &या कहता ह उसक> पीठ क पीछ इसक>                    “रावी सा1हर सचमुच ह! yयार करने लगा
                                                 े
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               परवाह  नह!ं  करनी  चा1हए।  UचSतामु&त  रहने  का   ह तुJह।”
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                                                                           ं
               बस यह! एक फामू ला ह।”                                   मg हस पड़ी थी उसक> बात सुनकर।
                       9कतनी बेहया ह वो, हर चीज म से लु?फ              “अfछा  जी  !  कहते  ह!  yयार  हो  गया
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               लेने को लाइफ का फ2डा बताती ह वह।                 जनाब को।”
                       पर सा1हर....।                                   मgने  इस  बात  को  मज़ाक  समझ  #लया।
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                                                                 ं
                       उसक तो फ2डे ह! अलग हg। वह इस सब          हस 1दया और भूल गई। पर भीतर हलचल सी हो
               को  िज़Sदगी  को  जीना  नह!ं  िज़Sदगी  को  भोगना    गई थी जैसे। सा1हर कई 1दन तक एक ह! बात प
                                                                                                             े
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               बताता ह। पर सा1हर तो सा1हर ह। हजार' लाख'         जम गया था। मुझे मनाता। समझाता। दल!ल दता
                                                                                                           े
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               द!वाने  हg  उसक।  उसक>  कPवता  क।  िजनम  स       रहता।
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               कभी  मg  भी  एक  थी।  इसी#लए  तो  भागी  गई  थी          “हमार! आयु म अSतर ह सा1हर। तुJह डर
                                                                                     7
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               रजना क घर। इसी#लए तो पहल! मुलाकात क बाद          नह!ं लगता ?”
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                ं
               फोन 9कया था मgने सा1हर को। नंबर डायल करते               “yयार उŒ नह!ं दखता।”
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               व&त धड़कन तेज हो गई थी मेर!। और सा1हर क>                 वह दल!ल दता।
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               मीठt आवाज ने जैसे मुझे बस म कर #लया था।                 “मg  पूर!  क>  पूर!  तेर!  नह!ं  हो  सकती।
                                                                                ं
               बहती पवन भी kक गई थी जैसे।                       &य'9क मg प?नी ह 9कसी क>।”
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                       ..... और उस रात को सा1हर क साथ ह!               “मुझे  dह  का  साथ  चा1हए  िज म'  क>
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               इन  बात'  को  मg  बार-बार  दोहराती  रह!  थी।  9फर   तPपश नह!ं।”
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               +%त1दन  ऐसे  ह!  बात  होन  लगीं।  हम  बढ़  रह  थे        वह तक दता।

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                                                         े
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               एक-दूसर क> तरफ। तेज कदम' स। अचानक पहच                   “....... लो 9फर द 1दया तुJहारा साथ। पर
                                                                                       े
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               गई थी उस 5बSदु पर िजस पर पैर 1टकाने से भी        अब इVजत रखना इस Kर`ते क>।”
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               डरती  ह!  थी  मg  सार!  उŒ।  मेर  सामन  Zडंपल,          आLखर!  वीकार कर #लया था मgने सा1हर
               रJमी और  राजबीर  जैस  9कतनी  ह!  नाम थे।  जो     को। उसक yयार को।
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               कभी,  9कसी  व&त  हावी  होना  चाहते  थे  मेर  पूर        पर  सोच  का  तूफान  हर  पल  1दमाग  म
                                                        े
               वजूद पर। पर हमेशा खाKरज कर दती थी मg ऐसी         उठता रहता। 9कतने ह! +`न Dयाक ु ल करते रहते
                                               े
                                                                थे मुझे। लगता ह जैसे कोई पाप कर रह! थी मg।
                                                                                ै
               मई – जुलाई                             75                                                                   लोक ह ता र
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