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ओर कोई हक ु मशाह अपने 1हसाब से द उनक> कई वीभ?स चेहर करते ह पीछा
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ब#ल वह कसकर बांधती ह चुनर!
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और छ ु पाती ह
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तब भी बचानी चा1हए कPवता उसक उभर स}दय का
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जब सब ख?म हो जाएगा Pव ताKरत समु\
तब भी कPवता म बसी रहगी दु%नया और
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जब पृlवी पर 9फर से बनगी मछल! बाजार पहँच
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नयी दु%नया जब वह लगाती ह आवाज
तो उसे अपना हाथ दगी कPवता मछल! ले लो मछल!
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और खड़ी हो जाएगी दु%नया 9क सारा बाजार उमड़ पड़ता ह
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कPवता उठने क #लए ह! होती ह तब 9कसी नजर म
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कामनाओं का होता ह समुदर
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वह नारगी चुनरवाल! लड़क> 9कसी म उठा होता ह
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वासना का Vवालामुखी
वह नारगी चुनर!वाल! लड़क>
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9कसीक> उग#लया रखना चाहती ह
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जलाती ह अपने सार नारगी सपन
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उनक काले पश क दश
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और मार दती ह अपने सार
उसक> मुलायम कां%तपर
िजजीPवषा क समु\
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नसीब क रह यमयी
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6ी क जSम-जSमांतर क ह
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क ु 1टल जाल पहचानती ह
यह सब खेल
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और अपने सपन' क Pवशाल
मैदान म उड़ना भी चाहती ह
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ख?म कर मछ#लय' क> टोकर!
उSह! पैस' से ले जाती ह
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अपनी इfछाओं स भर मन से उठते
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अपन छोट भाइय' और बूढ़! मां क #लए
+`न' क जवाब खुद ह! ढ ूंढ
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1दनभर का खाना
आलापना चाहती ह जीवन क अलाप
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सुबह उठकर अपने मर Pपता क>
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नाव 9फर छोड़ दती ह दKरयां म
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लंJबी नाक ह उसक>
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और फकती ह उनम
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कलº कलº बाल
अपने जdरत क जाल
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लंबी-सी चो1टय' म
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तब उसक> आँख' म होते ह
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Lखलता रहता ह
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आशाओं क चमक>ल सूरज
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हमेशा एक गुलाब
और भूख क> तरफ जानेवाल! रोशनी
मई – जुलाई 101 लोक ह ता र