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P. 106
पु तक समी ा
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पु तक - टोकर! म 1दगंत
लेLखका - अना#मका
अना#मका को सा1ह?य अकादमी सJमान
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#मलन क> घोषणा क साथ ह! 1हंद! क सोशल
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मीZडया संसार म जैस ज`न शुd हो गया ह। मुझे
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याद नह!ं आता, 1हंद! म 9कसी पुर कार पर ऐस
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सामू1हक उnलास का माहौल पहल कब बना था।
यह उनको हा#सल Dयापक वीक ृ %त और नेह का
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सूचक ह। इसका ~य िजतना अना#मका क क ृ %त?व
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को जाता ह उतना ह! उनक Dयि&त?व को, िजसम
सबको समेटन क> अËत मता ह। उSह िजस क ृ %त
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'टोकर! म 1दगंत' पर यह सJमान #मला ह, उस पर कभी एक 1टyपणी मgन भी #लखी थी।
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य कPवताए नह!ं, स¼यता क> अनसुनी आवाज़ ह Pवरासत का 1ह सा ह, उसी म रचे-बस, उसी स
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%नकल ह और अना#मका को एक Pवल ण
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अना#मका 1हंद! क> ऐसी Pवरल कव%य6ी ह िजनका
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कव%य6ी म बदलते हg।
परपरा-बोध िजतना तीण ह आधु%नकता- बोध भी
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उतना ह! +खर। उनक> पूर! भाPषक चेतना जैस वैसे तो अना#मका का पूरा लेखन ह! इस +9$या
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मृ%त क रसायन स घुल कर बनती ह और का साय है, ले9कन उनका नया काDय संह
पी1ढ़य' स नह!ं, स1दय' स चल! आ रह! परपरा का ‘टोकर! म7 1दगंत: थेर! गाथा 2014’ तो जैसे पूरब
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वहन करती ह। उनक> पूर! कहन म यह वहन से पि`चम तक, स¼यता के सूयदय से इस शाम
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इतना सहज-संभाDय ह 9क उस अलग स पकड़न- े तक, बौW थेKरय' स अSना कर%नना तक-
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पहचानन क> ज़dरत नह!ं पड़ती, वह उनक> अना#मका के Pवपुल-Pवराट सां क ृ %तक-दाश %नक
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%न#म %त म ना#भनालबW 1दखाई पड़ता ह। कहन Uचंतन का समाहार है- वाकई यह टोकर! अनुभव
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क> ज़dरत नह!ं 9क उनका 6ी?व सहज ढग स और संवेदना के इतने 1दगंत समेटे हए है 9क इससे
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इस परपरा क> पुनDया {या और पुनरचना भी करता गुज़रना सुख-दुख, कkणा और यं6णा के उस
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रहता ह- उनक जो 5बंब कPवता म हम बहत अछ ू ते |वं|व क> या6ा करना है िजसका नाम मानव
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और नए लगते ह, जीवन क> एक धड़कती हई स¼यता है।
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मई – जुलाई 106 लोक ह ता र