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P. 109

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               ि 6य'  क>  ठtक  उस  रग  पर  उगल!  रख  पाती  ह  सां+दा%यकता  के   उभार  से  लेकर  बाज़ारवाद  के

                      े
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               जहां स दद फ ू टता ह। उनक यहां एक Pवराट  6ी  +भाव         तक    क>,    उ?तर    आधु%नकता     और
                                                                                        े
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               गाथा  ह  जो  पुरान  शोषण  और  उपे ा  क  जान- े   भूमंडल!करण क Pव तार स लेकर रोज़मरा  क> उन
                                                                             े
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               पहचान  मुहावर'  स  नह!ं  बनी  ह,  जो  लgUगक  कहा%नय'  तक  क>,  जो  अख़बार'  क>  माफ  त  बनने
                                  े
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               समानता क> सूि&तयां गढ़न क मोह म नह!ं पड़ती,  वाले सूचनाओं के  समंदर म7 बुलबुले क> तरह उठती
                                        े
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               ले9कन  िजसम  अतीत  क  मम भेद!  अकलेपन  का  और  9फर  5बला  जाती  हg-  एक  गहन  चीरफाड़
                                                    े
               #सफ अपनी सामू1हकता स सामना कर रह! ि 6यां  अनवरत देखी जा सकती है। अपनी 9कताब ‘ 6ी?व

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               #मलती ह हालां9क व भी स¼यता क इस सफ़र म  के  मानUच6’ म7 अना#मका ने जो यह लय 9कया
                                                             7
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               महसूस करती ह 9क, ‘हकासी-Pपयासी सड़क / चल  है  9क  दु%नया  भर  म7   6ी  आंदोलन  अके ला  नह!ं
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               रह! थी साथ मेर / एक आरभ अधबना सा / बीच  चला है, कह!ं वह अ`वेत आंदोलन से जुड़ा है, कभी
               म ह! ढह गया था। एक अथ  फ ू ट गया था/ yयाऊ  पया वरण क> लड़ाई से और कह!ं मानवाUधकार के
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               क दूसर घड़े सा/  एकदम बीच रा ते।‘                 एजडे  स-  यह  स{य  भाव  इन  कPवताओं  म  भी
                                                                                                         7
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                                                                1दखता  ह-  यह  एक  समकाल!न  गाथा  ह  िजस
                    े
               कहन क> ज़dरत नह!ं 9क यह कkणा क> कPवता
                                                                इ%तहास क> दूरबीन लेकर एक  6ी आंख दख रह!
                                                                                                       े
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               ह, उस रचना?मकता क> जो स¼यता क> कोख स
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                                                                ह और इस आंख म संवेदना और कkणा का जल
                                                                 ै
               फ ू टती ह। इस#लए इन कPवताओं म सूि&तयां नह!ं
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                                                                ह- उसक> हलचल ह।
                                                                 ै
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               ह,  मगर  एक  दाश %नक  त?व  ह-  कह!ं  छ ु पा  हआ
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                                                          ु
               नह!ं, बेहद +?य  और कह!ं-कह!ं इतना +गnभ 9क  कई बार यह Pवराट 1हलती-डुलती  `यमयता इतनी
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                                                        े
               कPवता  क  बीच  उसक>  उपि थ%त  खटकन  तक  चंचल  हो  जाती  है  9क  कPवता  क>  लय  5बखरती
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               लग- या लग 9क इस दश न क #लए ह! यह कPवता  मालूम  होती  है,  कई  बार  घटनाओं,  जगह'  और
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               #लखी जा रह! ह।                                   काल'  का  एक-दूसर  म  अ%त$मण  ऐसी  असुPवधा
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                                                                                    7
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                                                                           ै
                                                                पैदा करता ह, जैस लगता ह 9क हम सुDयवि थत,
                                                                                         ै
               बहरहाल,  1हंद!  म  एक  ख़तरा  यह  ह  9क  जब  भी
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                                                 ै
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                                                                सुरUचत  कPवता  नह!ं  पढ़  रह,  एक  कव%य6ी  क
                                                                                                            े
               आप 9कसी कPवता क भीतर कोई  6ी गाथा दखते
                                                         े
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                                                                                                       े
                                                                भीतर  उमड़-घुमड़  रह  बहत  सार  भाव'  क  बीच
                                                                                   े
                                                                                              े
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               ह,  उस  फौरन   6ी  Pवमश   क>  चालू  शhदावल!  म
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                                                                                े
                                                                आवाजाह!  कर  रह  हg।  ले9कन  यह!ं  स  यह  समझ
                                                                                                  े
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                वीकार  करन  या  ख़ाKरज  करन  का  खेल  शुd  हो
                                                                भी  बनती  ह  9क  दरअसल  कोई  बड़ी  कPवता  कई
                                                                           ै
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               जाता ह। यह बात  पMट ढग स कहनी होगी 9क
                                         ं
                                                                बार अपन काDय?व और काDय-PवSयास म तोड़फोड़
                                                                        े
                                                                                                     7
                                    ै
               यह  6ी Pवमश  नह!ं ह, यह समकाल!न Pवमश  ह
                                                             ै
                                                                    े
                                                                                    ै
                                                                करक ह! संभव होती ह।
               िजसम  अपन  समय  क  बाक>  सवाल'  क  +%त  भी
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                               ै
               एक स{य भाव ह। अना#मका क कPवता संसार म
               मई – जुलाई                             109                                                                   लोक ह ता र
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