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               क  जल  क  बीच  पड़ी  वत मान  क>  उन  Pवराट  और  उसक>  बहत  सार!  परत'  से  पKरUचत  कोई
                                                                              ु
               #शलाओं  क>  तरह  िजनस  गुजर  5बना,  िजनको  लेLखका  ह!  इतनी  सुघड़ता  से  इ%तहास  के   सुधार'
                                        े
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               बसाए  5बना  यह  दु%नया  बस  नह!ं  पाती  ह।  यह  क>  कलई  खोल  सकती  है।  ऐसी  सुघड़- िMटसंपSन
                                                            ै
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               आधु%नकता हर परपरा क साथ जैस गुथी हई ह।  कव%य6ी  ह!  ‘गLणका  गल!’  जैसी  कPवता  #लख
                                                   ं
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               वह  थेKरय'  क>  बातचीत  क  बीच  क ु Kरयर  भी  ल  सकती है और साहसपूव क कह सकती है- ‘स¼यता
                                                        g
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               सकती  ह,  मोबाइल  फोन  भी  सुन  सकती  ह  और  से भी +ाचीन / ये न1दय' का तट थीं Pव तीण - /
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               लाख'  अनाम  पाठक'  क>  ट!प  भी  पढ़  सकती  ह।  चोर, नपुंसक, मूख , संSयासी, लंपट, सामंत / इनके
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               अचानक  एहसास  होता  ह  9क  यह  जो  थेKरयां  ह,  तट आते डूबती नौकाओं पर / और ये उSह7 उबार
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               यह  जो  उनका  संवाद  ह,  इ%तहास  क  स1दय'  लंब  लेतीं।‘  ऐसा नह!ं 9क अना#मका इस गLणका गल!
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               रा त' पर यह जो चहलकदमी ह वह पहल कभी हो  का कोई आभामंZडत और  वायवीय भाMय रच रह!
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               चुक> ह, अब उस नए #सर स िजया और रचा जा  ह',  वे  5बnक ु ल  ठोस  ढंग  से  इस  बंद  गल!  क>
               रहा ह- यह इ%तहास को, दुख को, संवाद को Vय'  Pवडंबनाओं को पहचानती हg और अपने अधेड़ होते
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               का  ?य'  रख  दन  क>,  मंUचत  कर  दन  क>  युि&त  समय  से  उनक>  थक>  हई  मुठभेड़  को  भी  जानती
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               नह!ं  ह,  उस  अपन  भीतर  उतार  कर  क ु छ  नया  हg।  यह  कPवता  अपनी  अगल!  पंि&तय'  म7  ह!
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               बनाकर + तुत करन क> यातना भी ह। इसी रा ते  5बnक ु ल  बदल  जाती  है-  ‘अब  इनके   +ेमी  अधेड़
               ‘%तलो?तमा थेर!’ #मल सकती ह जो याद करती ह-  Pव थाPपत  मजूर,  “इनसे  तो  पैसे  भी  नह!ं  मांगते
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               “’तुJहारा सुधार नह!ं / Dयथ  मgन ऊजा  ज़ाया क>’,/   बनता  ऐ  हज़ूर!  पर  हमार!  बिfचयां  पढ़  रह!  हg
                                                                          ु
               खास संताप स उसन कहा/ और चला गया!/ जब  Pव तृत  œ %तज  पर  ककहरे-  “  उSह'ने  उमग  कर
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               वह चला ह! गया/ राममोहन राय, ई`वरचं\, कावº,  कहा  और  खांसने  लगीं।  लेट!  हई  छत  %नहारती
                                                                                              ु
               राणाडे,  Vयो%तबा  फ ु ल,/  पंZडत  रमाबाई,  साPव6ी  अपÁंश  का  Pवरह  गीत  द!खती  हg  ये  गLणकाएं
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                                                   े
               बाई-/ सब मुझस #मलन आए!/ उSह'न मेरा माथा  पुराने शहर के  लालटेन बाज़ार म7 लालटेन तो नह!ं
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               सहलाया/  और  बोल!ं  धीर  स-/  ‘इ%तहास  क  सुधार  जलती,  पर  ये  जलती  हg  लालटेन  वाल!  धुंधल!
               आंदोलन/   6ी  क>  दशा  को  %नवे1दत  थे,  /    और  1टमक से।‘
               सुधरना 9कस था, यह कौन कह।‘”
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                                                                यह  अना#मका  हg।  उSह  उस  बुझती  हई  कमज़ोर
                                                                                                   ु
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               &या  इसक  बाद  भी  यह  संशय  रह  जाता  ह  9क  रोशनी का इतना साफ पता मालूम है 9क जैसे यहां
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               अना#मका इ%तहास क> 9कन ताकत' क Pवरोध म  तक पहंचने के  #लए उSह7 कोई +य?न नह!ं करना
                                                                       ु
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               ख़डी  ह  और  9कन  हा#शए  पर  पड़े  मूnय'  का  घर  पड़ता।  वे  सव  थानीय  से  %नतांत  अ%त थानीय  हो
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               बसान %नकल! ह? बहत गहर! परपरा म अनु युत  उठती  हg,  साव का#लक  से  5बæक ु ल  कालबW।  वे
                                   ु
               मई – जुलाई                             108                                                                   लोक ह ता र
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