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P. 43

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               स?ता  ह,  जो  मनुMय  म  आशा  और  भय  उ?पSन       Pवशेष संबंध बोध ह जो मूलतः +क ृ %त को  वयं स
                       ै
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                                                                                                            ै
               करती  ह।  इस  पर  काबू  पाने  क  #लए  मनुMय      अलहदा  मानने  वाल!   िMट  से  जSम  दता  ह।
               %नरतर  +यासरत  रहता  ह।  यह  संबंध  +क ृ %त  क   पि`चम  म  इस   िMट  का  Pवशेष  dप  से  Pवकास
                                                                         7
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               सामने  अश&त  मनुMय  क>   वयं  को  बचाने  और      हआ। इस Pवचारधारा  का संबंध, अंततः +क ृ %त पर
                                                                 ु
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                                                                                          ै
               अपनी सामlय  को पहचान पाने  क> एक अनवरत           Pवजय क उप$म क साथ ह। गहर म यह  िMट
                                                                                  े
                                                                        े
                                                  ै
               चलने वाल! +यासभू#म क> तरह का ह। इस संबंध         भी +क ृ %त को मनुMय क अनुक ू ल बनाने का +यास
                                                                                     े
               म  Pवनाश,  सृजन  और    िजजीPवषा  क>  +वृि?तयां   करने से जुड़ी है। परंतु इस  िMट के  पीछे यह भाव
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               हमेशा एक दूसर क Lखलाफ लड़ाई लड़ती रहती हg।         %छपा होता  ह 9क +क ृ %त अनंत और अ य ¿ोत'
                                                                             ै
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               इसका  लय  मनुMय  क>  +क ृ %त  पर  संभाPवत       वाल!  होती  ह,  िजस  पर  Pवजय  पाने  से  मनुMय
                                                                                                           ै
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               Pवजय क> उJमीद  क dप म दखा जा सकता ह।             सव शि&तमान  या  अ%तमानव  हो  सकता  ह।  दवी
                                                                           े
                            े
               दो : एक दूसर  िMटकोण से अपार शि&त, सामlय         आधार  वाल  अनेक  #मथक  इस  तरह  क>  अनेक
                                                                             े
                                                                                           7
                                                                                    g
                                        े
               और रह य से यु&त होने क कारण +क ृ %त मनुMय        कथाओं  से  भर  पड़े  ह,  िजनम  मनुMय  को  शैतानी
                                                                          े
                                                                               े
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               को  पूVय  व तु  क  dप  म  1दखाई  दती  ह।  9फर    शि&तय' क सहार +क ृ %त पर Pवजय पाते हए 1दखाया
                                                      ै
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               जब मनुMय +क ृ %त क +%त +ाथ नारत होता ह तो        जाता ह।
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                                                                         े
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               +क ृ %त  उसे अपने अ य ¿ोत' म से भोय पदाथ        इसस आग चलकर यह Pवचार पैदा हआ 9क +क ृ %त
                                                                                                 ु
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               +दान  करती  ह।  इस  +कार  +क ृ %त  को  +सSन      क> आपKरसीम संभावनाओं का उपयोग मानव समाज
               करने  क  #लए 9कये  जाने वाले    अनेक  +कार क     क सामू1हक 1हत म 9कया जा सकता ह। शैतान क
                                                            े
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                                                                                                            े
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                                                                                                      े
               कम कांड और अनुMठान +कट हो जाते हg।               समांतर यह Pवचारधारा +क ृ %त क दवीकरण क +यास'
               तीन: एक अSय  िMटकोण से +क ृ %त और मनुMय          से सामने आई।
                                                                      7
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               क बीच पूरक संबंध होते हg। मनुMय  वयं +क ृ %त     बाद म जब मनुMय Pव_ान क Pवकास क एक ऊचे
                                                                                          े
                                                                                                           ं
                                                                            ं
                                                                                                   7
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               का पु6 या प%त हो सकता ह  और +क ृ %त मनुMय         तर तक पहचा, तब उसे यह समझ म आने लगा
                                                                            ु
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               क> माता या  सहचर!। इस तरह क संबंध क> बात         9क  +क ृ %त  क>  अपKर#मत  संभावनाएं  भी  अंततः
                                                                        ै
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               हमार  यहां  +क ृ %त-पुkष  या  #शव-शि&त  क  संबंध'   सी#मत ह। जहां तक ‹¾मांड का अपार Pव तार ह
                                                     े
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               क dप म 1दखाई दती हg। वेद' म अSय6 ‘ पु6ोऽहम ्     वहां तक तो यह संसाधन' क अनंत होने क> बात
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               पृथीDयाम ् ’ कह कर +क ृ %त को माता और मनुMय को   समझ आ सकती ह, परतु जहां तक +`न पृlवी क
                                                                                     ं
                                                                                 ै
                                                                                                            े
                                                                                                   े
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               उसका पु6 कहा गया ह। यह संबंध पर पर पूरक,         संसाधन' का ह, वहां बहत जnद हमार  +ाक ृ %तक
                                                                                   े
                                                                          े
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               उ?सव धम” और dपांतरकार! +तीत होता ह।              संसाधन' क ¿ोत' क संकट – त होने क हालात
                       े
               +क ृ %त  क  साथ  मनुMय  का  जो,  भय  और  आशा     सामने आ जाते हg। इस तरह Pव_ान ने +क ृ %त क>
                                                                                                             े
               वाला  संबंध  ह  उसका  आधार  +क ृ %त  क>  अपार    बाबत मनुMय क> सोच और समझ को  गहराई स
                             ै
                                                 े
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               अनंत  शि&तय'  क  अ%नयं56त  होन  और  उनक          बदल 1दया।
                                                            े
               सामने  Pववश  होकर  असुरœ त  होने  क  बावजूद      जहां  तक  यूरोप  का  संबंध  ह  वहां  मनुMय  को
                                                                                            ै
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               अपनी संघष शीलता म आ था क साथ ह। यह एक            +क ृ %त  स  अलहदा  मानन  क>    +वृि?त  +धान
                                                                         े
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               मई – जुलाई                             43                                                                   लोक ह ता र
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