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9क य1द हम मनुMय क> दह और उसक भीतर क Dयवहार dप' को हम अपने सामने चKरताथ होता
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Uच?त को ठtक स समझते और Pव`लेPषत करते ह दख सकगे। परतु होता इसक उलट ह। मनुMय दह
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तो उनक ज़Kरए हम +क ृ %त क %नJन और उfच क> मूल +क ृ %त, िजन +वृि?तय' क> अ#भDयि&त
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तर को जान सकते हg और इस तरह अपने भीतर चाहती ह वे स¼यता और सं क ृ %त क स?ता Pवमश
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ह! +क ृ %त क %नJन dप' से उfचतर dप' क सार और Dयव था क #लए खतरनाक मानी जाने लगती
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को उपलhध करने क> ओर + थान कर सकते हg। ह। इस तरह मनुMय क> दह क> +क ृ %त और
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पि`चम म िजस +कार +क ृ %त पर Pवजय +ाyत समाज क बीच एक तरह क Pवरोध को +कट होते
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करते हए उसक दोहन शोषण का माग %नकला दखा जाता ह।
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और +क ृ %त को मनुMय क #लए उपयोगी उ?पाद' म िजस +कार मनुMय दह का दमन होता ह, उसी
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बदलने क> एक बड़ी होड़ शुd हो गई, उसी +कार +कार पृlवी क> दह का दमन भी, उसी तरह क>
पि`चम का स¼यता और सं क ृ %त Pवमश भी सोच क> वभाPवक पKरण%त ह। यहां यह Pवचार
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मनुMय दह क साथ जुड़ी उसक> +क ृ %त को उसी भी सामने आता ह 9क िजसे हम खेती-बाड़ी कहते
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+कार अपन अनुक ू ल बनाने और Dयवि थत करक हg वह दरअसल धरती क> उपजाऊ मता क साथ
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उसे समाजोपयोगी बनाने पर जोर दता ह। फ ू को ने छड़छाड़ अUधक ह। वह +ाक ृ %तक 9क म क>
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मनुMय दह को आधु%नक और उ?तर-आधु%नक उव रता क> बजाए, इस उव रता का अUधक
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स?ता Pवमश क उस अ 6 क> तरह दखा ह उ?पादनमूलक शोषण ह। उव रता का दोहन शोषण
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िजसका +योग पु#लस, Uच9क?सा और #श ण स भी गहराई म पृlवी क> दह का दमन और दोहन
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संबंUधत सं थाएं करती ह और स¼यताकरण क ह। यह! ि थ%त जंगल', पहाड़', समु\, नद!, ताल',
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नाम पर अंततः दह और उसक> मूल +क ृ %त का हवा और समूचे पया वरण क> भी ह।
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दमन 9कया करती ह। िजस तरह क> स¼यता और सं क ृ %त का Pवकास
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मनुMय दह क #लये उसक> अपनी +क ृ %त क मानव जा%त ने 9कया ह, वहां बाहर! +क ृ %त क
मुता5बक अ#भDयि&त संभव बनाने लायक हालात दमन, दोहन और शोषण क> बात इस#लए
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अभी तक मानव समाज %न#म त नह!ं कर सका ह। अ%नवाय ता मौजूद हो गई ह, &य'9क उसी क सहार
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स¼यता और सं क ृ %त क Pवकास क दौरान उnट +क ृ %त क> अUधकाUधक उपादयता को हा#सल 9कया
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हआ यह ह 9क धीर-धीर मनुMय क> दह का जा सकता ह। इसक उलट भारत जैसे दश' म
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अUधकाUधक अनुक ू लन, Dयव थापन और अंततः अभी भी यह Pवचार बार बार दोहराया जाता ह 9क
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दमन 9कया गया ह। ायड ने मनुMय Uच?त क मनुMय का बाहर! +क ृ %त क साथ संबंध मनुMय
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भीतर मौजूद क ुं ठा को मनुMय क> दहगत +वृि?तय' क> आंतKरक +क ृ %त म मौजूद +क ृ %तपूजा क भाव
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क दमन क> तरह दखा था। उनका यह मानना था से जुड़ा हआ होना चा1हए, ता9क दोन' म तालमेल
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9क य1द मनुMय क> दह क> मूल +क ृ %त और उसस हो सक। य1द मनुMय क> आंतKरक +क ृ %त म लोभ,
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संबW +वृि?तय' को व थ सामािजक अ#भDयि&त मोह, पKरह आ1द क> +वृ%तयां अUधक होगी तो
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+दान क> जा सक, तो एक बेहतर समाज क वह +क ृ %त क दोहन शोषण का कारक हो जाएगा।
मई – जुलाई 49 लोक ह ता र