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P. 60

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                                                                                                             े
                       ये साला गुरPवंदर भी न, इSसान का मन       Uगर! एक भी... धूल और रत क अSधड़ चल रह
                                                                                             े
                                                                 g
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               पढ़  लेता  ह।  बोला,  ‘‘अबे  गध,  असल  म  हम  हg   ह...’
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               अपनी #म¹ी क माधो। जब तक बाजार हम अपनी                   +`न' अथा त ड2ड' क> भीड़ बढ़ती ह! जा
                                                      7
                                   े
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               #म¹ी  स  पूर!  तरह  स  Pवलग  नह!ं  कर  दगा,  हम   रह! ह। उनका जोश और शोर भी। ध&का लगन स
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                                                                                                          े
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               ऐसे ह! कसमसाते रहगे।’’                           मगना  ताऊ  Uगर  गया  ह  ले9कन  उसका  सवाल,
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                                                                                        ै
                       9फर  करवट  बदल  कर  सोचने  लगा,  &या     ‘‘1दल!प, वेतन से तुJहारा गुजारा तो हो जाता...’’
                                                                                  ै
                                  े
               हमेशा  सब  क ु छ  ऐस  ह! चलता  रहगा?  या  उसक    अधूरा ह! रह गया ह।
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                                                            े
               बfचे भी कभी उस गुलाबी ‘ॉक वाल! शोख चंचल                 जीरो  पावर  क  बnब  क  +काश  म  उसन
                                                                                    े
                                                                                                       7
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                                  े
               बfची क> मा%नंद पूर आ?मPव`वास क साथ पाक           प?नी और बfच' क चेहर पढने क> को#शश क>।
                                                                                       े
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               म चहकते 9फरग? और वहां तैनात पु#लसकम” स           क ु छ सोचते हए कह!ं खो गया। &या वह सचमुच
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               हाथ #मला कर, ‘हलो अंकल’ कहने का साहस जुटा        चाहता ह 9क वह हर हाल उन दो आरोप' से बर!
                                ै
                                                                        ै
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               पाएंग?                                           हो  जाये  जो  उसक  जमीर  को  9कसी  करवट  चैन
                                                                                 े
                                                                          े
                       एक कसक सी £दय म उठt। महसूस हआ            नह!ं लेने दते?
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               जैसे द!वार' और छत पर हर जगह +`न ह! +`न                  झुंझलाते  हए  उसने  मुह  फर  #लया।  उसी
                                                                                            ं
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               टगे हए हg। बिnक +`न' का एक हजूम ह! उमड़           समय  #सपाह!  का  ड2डा  उसक  सामने  आ  खड़ा
                 ं
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               आया ह। बिnक ड2डे... गाल! %नकल! मुह से।           हआ। और दखते ह! दखते बfची क +`न क kप
                                                                            े
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                       कोई  कहता,  ‘‘गाल! दने और  ऊचा  बोलन     म  पKरव%त त  हो  गया,  ‘‘#सपाह!  &यू  मारता  ह,
                                          े
                                                            े
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               से बात म वनज कम हो जाता ह र...’’                 पापा?’’
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                       एक और Uचर पKरUचत चेहरा लडखड़ा कर                 बहत डराता ह यह सवाल... डर और सोच
                                                                                    ै
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               Uगरते-Uगरते संभल कर बोला, ‘‘बावल! बात, मगनै      से  कस  मु&त  हो  वह  भावुक  दहाती? यह  भी  तो
               ताऊ  सार!  िजनगी  गाल!  काढ!...  न  कद!  उण  रो   एक सवाल ह!
                                                                           ै
               तरक कमजोर पÆयो ना दबको!’’                               उसने  %न\ा  म  %नमन  प?नी  क  शांत,
                                                                                     7
                                                                                                      े
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                       ताऊ  मगना  राम  उसक  सामने  आ  खड़ा       सSतुMट चेहर क> ओर दखा। लगा जैसे अभी उठ
                                                                            े
               हआ।  बताने  लगा,  ‘पर और  परार  साल  क>  तरह     कर  कहगी,  ‘‘आपका  वह  #सपाह!  भला  बfच'  को
                                                                       े
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                                                                       े
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               हम  इस  साल  भी  अकाल  क>  मार  झेल  रह  ह,      &यू  मारगा?  दLखयेगा,  कह!ं  आपको  ह!  न  मारने
                                                                   े
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                                                  g
               बेटा।  सार!  खेजड़ी  अप ण  हो  चुक>  ह...  बूद  नह!ं   लग!’’

                                                          अनुवादक
                                                       अमर!क #संह द!प

                                                     7
                          “लैट नJबर 101, गोnडी अपाटमट, 119/372-बी0, दश नपुरवा, कानपुर-208012 (उ0+0)
                                  मोबाइल - 08765379718 ई -मेल amriksinghdeep1@gmail.com
               मई – जुलाई                             60                                                                   लोक ह ता र
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