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पर 1दल!प को हसी नह!ं आई थी। जब वह राVय सरकार ने अपना एक कारपोरशन
इन लोग' क ठहाक' म शा#मल नह!ं हो पाता तो भंग कर उSह सरyलस सैल म डाल 1दया था। एक
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ये उसको तरस का पा6 समझते हg। ले9कन 1दल!प वष तक वहां 1हलगे रहने क प`चात 1दल!प स1हत
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को महसूस होता ह 9क ये सब रॉक गाड न म खोए क ु छ अSय को लाटर! Pवभाग म लगा 1दया गया।
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हए लोग हg और उसे महकते रोज गाड न म खड़ा वे सारा 1दन यहां लोग' क सपन' क वाउचर को
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दख कर ह!न भावना महसूस करते हg। बंडल' म बांध कर बोर' म भरते रहते हg।
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रॉक गाड न! हां! 9कतना दूरदश और Pव_ ‘‘राम +काश! य बोर उधर टोर म रखो!’’
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Dयि&त होगा, वह आदमी िजसने रॉक जैसे कठोर इस मुगालते म 9क वह यहां थाई ह, कभी-कभी
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शhद क साथ गाड न जैसा कोमल शhद जोड़ 1दया। उसक> आवाज म अ%तKर&त आ?मPव`वास झलकन
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अव`य ह! वह पहले ह! ताड़ गया होगा 9क इस लगता ह।
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प?थर' क शहर म लोग' को Áम पाल कर ह! पर कई अवसर' पर यह आ?मPव`वास
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जीना होगा। #सफ नोट Uगनते हए और सम त क?तई जवाब द जाता ह। होल! वाले 1दन, कई
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लोग, Kर`ते-नाते दो त-यार नंबर |वारा ह! पहचाने दुकान' पर तो वह रट पूछने क #लए भी नह!ं dका
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जाएंग... 703 वाल! आ2ट!... 20 सै&टर वाल था। ये तो महगी ह'गी। स ती मी yलाि टक क>
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अंकल... सै&टर 17 क> मा9कट... गूगामाड़ी, छोट!-छोट! PपचकाKरयां... पूरा बाजार छान मारा
गंगानगर सब भूल जाएंगे। यह भी भूल जाएंगे 9क पर कह!ं नह!ं #मल!ं। हर दुकान पर Pप तौल और
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कसKरया बालम पधारो Jहार दस... बंदूक क> श&ल वाल! PपचकाKरयां थीं। रग भर कर
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यहां तो मेहमान क आगमन का समाचार घोड़ा दबाओ तो दोनाल! स रग क> धार %नकलेगी।
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भी यू चgका दता ह जैसे भूडोल। लाल सुख रग क> धार। पर इतनी महगी... हर
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जब वह कहता ह 9क आजकल तो हर ओर बस लूट ह! मची हई ह!
चीज एम.एन.सीज क संकत पर... तो यार दो त दुकानदार' को इस बात क> र?ती भर
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‘वqडा आया कामरड’ कह कर उसका मजाक उड़ा परवाह नह!ं ह। लोग ?यौहार क अवसर पर बाजार
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दते हg। म आए हg तो क ु छ न क ु छ तो ले कर जाएंग ह!।
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‘‘सर सूतल!...?’’ एक मह!न-सा नार! वर आजकल जैसे सामान क> Zडमा2ड ह वह! तो
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उसक कान' म पड़ा। उपलhध रहगा बाजार म।
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वह अपनी Uचंतन धारा से %नकल कर हाल दुकानदार एक और को#शश करता ह, ‘‘यह
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म लौट आया। हाल जो वाउचर' क बंडल, बोर, ले लो बाऊजी, ए.क.-47, इस व&त तो सब स
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ठकदार |वारा सyलाई क> गई सुदर ले9कन मूलतः स ती यह! ह। Pपचकार! क> धार भी दूर तक
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साधारण सी लेबर-लड़9कय' और उनक 1ट9फन' स जाती ह... यह चीनी माल ले लो, हर रज का ह।’’
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लगभग भरा हआ ह। उसक> रज से अब भी सब बाहर हg। वह
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रग' क भाव भी दरयात कर चुका ह। इससे पहले
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कभी इतने बदरग नह!ं थे रग।
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मई – जुलाई 56 लोक ह ता र