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नरररया



























            या उनकरी उपासना पर्तत, यतरीनद्र के श्दों में, 'एक तरह सने   कतव सने श्दों को बुननने गुननने और रचनने का स्लरीका सरीखतने हैं जो
          यह श्रर्ा और साधना सुर और ्लय में तव्लरीन होतरी हुई प्रतरीत होतरी   उनके इस संग्रह में मुखरता सने दरीख पडता है. कबरीर करी अनहद सुनतने
          है.' अवध के संगरीत और समाज पर यतरीनद्र का गहरा अधययन है.   हुए वने जब कबरीररी प्रतययों को आज के आ्लोक में बरततने हैं तो जैसने
          इसके त्लए वने वातजद अ्लरी शाह के 'रहस' (रास और कथक का   का्ल का सतदयों का अंतरा्ल तसमटता हुआ महसूस होता है.
          समाहार) सने ्लनेकर शरर के 'गुतजशता ्लखनऊ' सने होतने हुए बनेगम   तवभास करी कतवताओं में अशोक वाजपनेयरी नने अनशवरता के उजा्लने
          अखतर करी गायकरी, मुहरजाम के तदनों में गायने जानने वा्लने 'ट्यापा', तथा   करी खोज करी है तो त्लं्ा हनेस नने कबरीर के प्रतततबमबों के एक नयने आभास
          नवाब शुजाद्ौ्ला के दरबार में सोज़खवानरी और मतसजायाखवानरी के   करी  बुनावट  ्लतक्षत  करी  है.  कबरीर  ममजाज्  पुरुषोत्तम  अग्रवा्ल  नने  इन
          महतफ्लों तक करी चचाजा करतने हैं तो अवध के सोहर गरीतों, बनारस के   कतवताओं में कतव के खुद के अनुभवों को कबरीर करी वाणरी के आ्लाप
          बुढवा मंग्ल, झू्ला, कजररी, चैतरी, बारामासरी व फाग गायकरी के साथ   में ढ्लतने दनेखा है. मनरीष पुष्क्लने कहतने हैं, इन कतवताओं करी साख—
          -साथ अवध के समाज में कतथकों करी परंपरा का तजक् भरी करतने हैं.   कथन करी कथररी, तबरह के बरीज और रहट्य करी रा्ख सने ओतप्रोत है
          गरीत संगरीत के क्षनेत् में बाइयों और तवायफों करी भरी एक समृर् परंपरा   और कबरीर को गानने वा्लने प्रह्लाद तसंह तटपानया इसने यतरीनद्र के अंतर करी
          रहरी है तजसनने तहंदरी तफलमों के गरीत संगरीत करी आधारतश्ला रखरी है.   अतभवयस्कत मानतने हैं. कभरी दनेवरीप्रसाद तमश्र नने एक बातचरीत में यह कहा
          यतरीनद्र इततहास के तहखानने को खंगा्लतने हुए यह बात बडरी तशद्त   था, 'यतरीनद्र करी कतवताओं में अवध करी कूक, अवसाद और वक्ता है.'
          सने कहतने हैं तक 1945 के बाद पनेशनेवर शाट्त्रीय गायक गातयकाओं   गु्लजार नने ऐसा हरी भरोसा यतरीनद्र में जताया है. एक सममोतहत आ्लोक
          के उदय के बाद भ्लने हरी बाइयां और तवायफें गुमनामरी के अंधनेरने में   सने भररी यतरीनद्र करी कतवताओं सने गुजरतने हुए ्लगता है, यह युवा कतव है
          खो गयरी हों, तकनतु बसंत बहार, बैजू बावरा और तचत््लनेखा जैसरी   तो सगुण भस्कत वा्लने राम करी अयोधया में जनमा, जहां ्लोक में यह श्रुतत
          तफलमों के उतकृष्ट संगरीत तक पहुंचनने में इन बाइयों और तवायफों   है तक 'हम ना अवध मा रहबै हो रघुबर संगने जाब.' -पर तनरगुतनया कबरीर
          करी गातयकरी का अहम रो्ल रहा है.                  के पडोस में बैठ कर वह जैसने उनहीं करी सातखयों को सतदयों बाद अपनने
            क्ला, संगरीत तथा रागदाररी को बखाननने का संयम और स्लरीका   श्दों में उ्लट-पु्लट रहा है.
          सबके पास नहीं होता, न इतना तवपु्ल अधययन हरी तक वह बाररीकरी   तवभास सने यतींद्र करी हरी एक कतवता 'न जानने कौन सा धागा है'
          सने वैतशष्ट्य का तनरूपण कर सके. पर यतरीनद्र नने यह खूबरी साधना   उठाता हूं:
          सने अतजजात करी है और उनकरी दृस्ष्ट में साररी क्लाएं एक बडडे क्ला-  न जानने कौन सा धागा है
          कुटुमब का तहट्सा हैं.                              जो बांधने रखता हमको
                                                             दुतनया भर के तमाम ररशतों में
            कयि-विशकतति                                      न जानने तकस फू्ल सने उपजा कपास है
            यतरीनद्र नने अकसर दूसरों पर त्लखा है. पर दूसरों पर त्लख कर यह   जो ढके रखता हमाररी
          जरूर जताया है तक दूसरों के महतव को आंकना दरअस्ल खुद करी   तार-तार हो चुकरी गाढ़डे प्रनेम करी रनेशमरी चुनररी
          साथजाकता को भरी कहीं न कहीं दजजा करना है. पर हम यह भू्लें तक   न जानने कहॉं सने आए हुए ्लोग हैं
          यतरीनद्र मू्लत: कतव हरी हैं तजसनने 'ड्ोढरी पर आ्लाप' और 'तवभास'   जो थामने रहतने हमाररी
          जैसने दो नायाब संग्रह हमें तदए हैं.  हमारने समय में समसामतयकता का   जरीवन-तानपूरने करी खु्लतरी जातरी जवाररी.
          इतना बो्लबा्ला है तक कोई कतव जब अपनरी परंपरा सने जुडता है तो
          उसने तकंतचत संशय करी तनगाह सने दनेखा जाता है. ्लनेतकन उसरी परंपरा   कहना  न  होगा  तक  यतरीनद्र  तमश्र  नने  अब  तक  करी  सातहस्तयक
          सने आतरी हुई सतदयों के आगने करी आवाज़ को सुनता हुआ कतव जब   यायावररी  में  ऐसने  हरी  ननेह-पगने  धागने  सने  सातहतय  और  क्ला  के  बरीच
          कबरीर जैसने कृतरी कतव करी बग्ल में बैठ कर उससने संवादमयता का   सहकार और संबंधों करी गांठ ्लगाई है. वने अब श्दों के उस त्ल पर
          एक सघन ररशता बनाता है तो जैसने कतव के श्दों में 'कृतज्ता का   पहुंच चुके हैं जहां वने जरा, वयातध, ऊंच-नरीच और अपयश सने मत्लन
          सतव' उतर आता है. ''तवभास'' में यतरीनद्र तमश्र कबरीर जैसने जु्लाहने   नहीं होतने. n
          28   I गंभीर समाचार I w1-15 अगस्त, 2017w
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