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आिादी@हायसल
हररिंश, साांसद ि िररषठ पत्रकार
जादी ह्ें यूं ही नहीं क्ल गई थी, उसिे कलए ह्ें लंबे संघष्ण और बहुत सारी िुरबाकनयां
देनी पड़ी. इसिे ऐवज ्ें ह्ें आजादी क्ली. अब इस आजादी िे जश्न िे जजबे ढीले पड़
आरहे हैं. इसिी वजह िी गंभीरता से पड़ताल िरने िी जरुरत है. सवतंत्ता संग्ा् िे दौर िो
देखा जाए तो नेतृतव पर देशवाकसयांे िा भरोसा था, राजनीकति वग्ण जनता िी उम्ीदों िो पूरा िरने िा
भरसर प्रयास िरते थे, यह क्् आजादी िे बाद िे िुछ दशिों ति चलता रहा. याद किकजए लाल बहादुर
शासत्ी ने जब देश से सपताह ्ें एि कदन िे उपवास िा आह्ान किया था तो उसे कितना स्थ्णन क्ला था,
लेकिन पररदृ्य बड़ी तेजी से बदला. राजनीकत वग्ण घपलो, घोटालों िे कलए िुखयात हो गया. आ् लोगों ्ें
राजनीकति दलों पर अब वह भरोसा नहीं रहा. इन सबिे बावजूद बीते सात दशि ्ें देश ने हर क्षेत् ्ें प्रगकत
िी है. यह बात भी सच है कि एि तरफा कविास नहीं हो सिता, उसिे निारात्ि पहलू भी सा्ने आते
हैं, उनसे कनपटना भी आव्यि होता है, तभी जा िर एि ्जबूत राष्ट्र िा कन्ा्णण होता है. कजन नीकतयों
िे सहारे अब ति ह् कविास िे पायदान चढ़ रहे हैं, स्य स्य पर उनिी स्ीक्षा िरना आव्यि है,
तभी कविास िी रफतार बनी रह सिती है. आज रोजगार, युवा शशकत िा कनयोजन, ग्ा्ीण क्षेत्ों िा कविास,
िृकष िे क्षेत् ्ें कविास और अनुंसधान िी भारी आव्यिता है. किसानों िी शसथकत खराब हो रही है, इस
पर संसद िा कवशेष सत् बुलाना चाकहए. सा्कग्ि कविास िी गकत तभी तेज होगी.
पी साईंना् के सी तिागी
िररषठ पत्रकार ि सांपादक साांसद
ह िहना गलत होगा कि जादी िे बाद से ह्ने
ह्ने देश िी सवतंत्ता िाफी सफर तय
यिे बाद िुछ हाकसल नहीं आकिया है. जब
किया है. हां ये जरुर िहा जा आप सफर ्ें कनिलेंगे तो
सिता है कि कजनता हाकसल िुछ सिारात्ि चीजें
किया जाना चाकहए, उतना ह् सा्ने आएंगी तो िुछ
हाकसल नहीं िर पाए है. आजादी निारात्ि भी आएंगी.
िे बाद से चाहें जो भी सरिारें लेकिन िुल क्ला िर
हो उनिी प्राथक्िता ्ें शहरी ह्ने आजादी िे बाद जो
कविास जयादा रहा है. फलसवरूप पाया है, उससे िाफी ि्
ह् देख रहे हैं कि कजस अनुपात ्ें खोया है. ह्ने लगभग हर क्षेत्
शहरों ्हानगरों िा कविास हुआ है उस ्ें प्रगकत िी है. िई ्हा्ाररयों से ह ् ने
अनुपात ्ें ग्ा्ीण क्षेत्ों ्ें नहीं हुआ है. शहरी लोगों िो रोजगार कनजात पायी है. िानून िे ्ाधय् से या कफर
िे अवसर ग्ा्ीणों िे अनुपात ्ें जयादा है. कशक्षा, सवासथ जैसे क्षेत्ों ्ें जहां सा्ाकजि जागरुिता िे ्ाधय् से ह् िई िुरीकतयों िो खत् िरने
शहरों ्ें शसथकत थोड़ी ठीि है तो ग्ा्ीण क्षेत्ों ्ें बदहाल है. इसकलए ्हानगरों ्ें िा्याब हुए हैं. यह बात भी ठीि है कि ह्ारे सा्ने िई सारी
िी ओर पलायन कनरंतर हो रहा है. िभी िृकष ह्ारे अथ्णवयवसथा िी रीढ़ चुनौकतयां खड़ी है, चाहे वह देश िी युवा शशकत िे कनयोजन िा हो
हुआ िरती थी, आज बदहाल शसथकत ्ें है. किसानों िी संखया लगातार कगर चाहे कशक्षा िे स्ान अवसर िा या शहरी और ग्ा्ीण क्षेत्ों िे कविास
रही है. किसान ्जदूर बनने िे कलए बाधय हैं. ग्ा्ीणों िो उनिे गांव िे ्ें संतुलन िा. ह्ें इन सारी चुनौकतयों से जूझते हुए देश िो कविास िे
संसाधनों पर ही अकधिार नहीं है. उनिे सा्ने शहरों िी ओर रोजगार िे प्रगकत पर ले जाने िे धयेय से अनवरत िा् िरना होगा. ह्ें कवज्ान
कलए पलायन िरने िे अलावा िोई कविलप नहीं है. आजादी िे बाद देश ्ें िे क्षेत् ्ें िाफी प्रगकत िी है. ह्ारे वैज्ाकनि अब दूसरे देशों िे कलए
िृकष उतपादन ्ें तो ररिाड्ड तोड़ सफलता क्ली, लेकिन किसानों िी शसथकत भी उपग्ह बना रहे हैं और उसे अंतरीक्ष ्ें भेज रहे हैं, जब कि िुछ
लगातार दयनीय होती गई. ह्ने इन 70 सालों ्ें बहुत सारे उपग्ह बनाये दशि पहले ति ह् भी इन िायषों िे कलए किनहीं दूसरे देशों पर कनभ्णर
और आस्ान ्ें भेजा लेकिन ्ौस् िी सटीि जानिारी किसानों ति सहीं थे. ह्ारे आईटी सेकटर िी दुकनया लोहा ्ानती है. यह सब यूूं ही नहीं
स्य पर पहुंचे इसिे कलए संरचना िा कविास नहीं किया. जब ति ह् हो गया. यह पूरे देश िा साझा प्रयास है और ऐसे ही साझा प्रयासों िे
अपनी नीकतयों, िाया्णनवयन पद्धकत िो दुरुसत नहीं िरते तब ति आजादी से बदौलत ह् अपनी ्ंकजल िो प्रापत िर सिते हैं, किया है, अभी और
कया हाकसल हउआ इसिा िोई कवशेष अथ्ण नहीं रह जाता. आगे जाना है.
w1-15 अगस्त, 2017w I गंभीर समाचार I 23