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आवरण कथा


          पराधीन सपनेहु सुख नाहीं





            आजादी और औरतों का हावसल                                                   क्षमा शमापि



                                                                                      सुपररतचत कथाकार
                                                                                      एवं तचंतक
                                                                                      kshamasharma1@gmail.com
                     जब छोटी थी तो सककूल में पंद्रह अगसत बहुत धूमधाम से मिारा जाता था.  देशभशकत के
                     जोशीले और सुरीले गीत गाए जाते थे. कनवता प्रनतरोनगता, रंगभरो प्रनतरोनगता, िेताओं
                    के जीवि की िानटकाएं, आजादी से जुडे चररत्ों से समबंनधत फैंसी ड्ेस प्रनतरोनगताएं हुआ
                    करती थीं. खेल प्रनतरोनगता भी बडी संखरा में होती थीं.  कभी-कभार ऐसे कनव सममेलि
                     भी आरोनजत नकए जाते थे नजिमें देशभशकत से पररपूणया  कनवताएं सुिाई जाती थीं. चीि
                    और पानकसताि से लडाई हो चुकी थी, इसनलए इि दोिों देशों को देखिे और बदला लेिे
                   की बातें अकसर कनवताओं और भारणों में बराि की जाती थीं. भारण प्रनतरोनगताएं भी खूब
                     होती थीं. बच्े इिमें बढ़-चढ़कर नहससा लेते थे. ‘हम लाए हैं तूफाि से नकशती निकाल
                    के, इस देश को रखिा मेरे बच्ों संभाल के’ जैसे गािे गली-गली नवशेर रूप से सवतंत्ता
                     नदवस के आरोजि के नलए लगाए गए लाउडसपीकरों पर खूब बजते थे और एक अजीब
                                           नकसम के रोमांच से भर देते थे.






          कप   ता जी ्ुझे भी खूब जोशीले भाषण तैयार िराते थे, बार-बार  जाने और वो-िाटा वो-िाटा िा ्जा लेते थे.


               उनहें सुनते. ्ैं भी पूरे जोश से कचललािर भाषण देती और खूब
                                                             ्ां अिसर िहती थी कि अंगरेजों ने ह्ारे देश िे लोगों पर कितने
               इना् जीतिर लाती थी. कपता जी और ्ां से जब िोई आिर  अतयाचार किए. वह यह भी बताती थी कि कजस कदन गांधी जी ्रे थे
          िहता कि आपिी लड़िी तो बहुत अचछा भाषण देती है तो वे फूले न  तब आस्ान िाला हो गया था. अब इस बात ्ें कितनी सच्चाई है,
          स्ाते. सबिो जीते गए इना् कदखाते. पूरी रेलवे िालोनी ्ें आज िे  िह नहीं सिती. हो सिता है ्ां गांधी जी िी ्ौत िे दुख िो इस
          शबदों ्ें ्ैं सटार बन जाती. अगले कदन ्कखन कनिालते वकत िटोरी  तरह से बयान िर रही हो या उसे अपने दुख ्ें आस्ान िाला कदखा
          भरिर ्कखन चीनी क्लािर ्ां ्ुझे खाने िो देती. यह उसिा पयार  हो या कि सच्ुच आस्ान िाला हो गया हो.
          जताने और तारीफ िरने िा नायाब तरीिा था.             जो भी हो जैसे-जैसे स्य बीता आजादी िो लेिर आ् आद्ी िे
            कपता जी रेलवे ्ें थे. ह् लोग रेलवे िालोनी ्ें ही रहते थे. रात-  ्न ्ें खुद ्ुखतार होने िी जो आशा पली थी, वह धीरे-धीरे कतरोकहत
          कदन रेलगाकड़यों और ्ालगाकड़यों िी आवाजाही और लोगों िी चहल-  होने लगी.
          पहल, रेलवे सटेशनों िो ह्ेशा जगर-्गर और रौनि से भरे रहती थी.   बचपन ्ें आजादी िा कया ्तलब है, यह अिसर स्झ ्ें
            पंद्रह अगसत िे कदन सटेशन पर भी खूब सजावट होती थी. रंग-  नहीं आता था. आजादी िा ्तलब सबिे कलए अलग-अलग
          कबरंगी झंकडयों और गेंदे िे फूलों िी ्ालाओं  से पूरे सटेशन िो सजाया  भी था. िोई िहता था कि अब वह िहीं भी आ जा सिता
          जाता था. उन कदनों िोयले से चलने वाले इंजन खूब सजे होते थे. उन  है. िोई िहता कि अब वह ्नचाही पढ़ाई िर सिता है.
          पर टंगी फूल ्ालाएं हवा ्ें चारों ओर लहराती कदखती थीं. बच्चे नए  किसी िे कलए देश ्ें किसी गोरे िा कदखाई न देना ही
          िपड़े पहनिर खूब सज-संवरिर कनिलते थे. याकन कि आजादी िा  सबसे बड़ी आजादी थी.
          जश्न पूरे जोर-शोर से ्नाया जाता था. अिसर पंद्रह अगसत िे कदन   लेकिन आजादी िे िारण सबिो ्नचाहे
          बाररश होने लगती थी. सब लोग भगवान से ्नाते थे कि बाररश हो  चांद-कसतारे  क्ल  सिते  हैं,  वैसा  न  हो
          तो सही ्गर िाय्णक्् होने िे बाद हो. शा् िे स्य आस्ान रंग-  सिा. ऐसा होता भी नहीं है कि सौ ्ें से
          कबरंगी पतंगों से भर जाता था. पतंग जैसे आजादी िा सबसे बड़ा प्रतीि  सौ लोगों िी सभी आशाएं पूरी िी जा
          थी. सब लोग अपने दरवाजों, आंगनों या छत पर चढ़िर पेच लड़ाए  सिें. दकलतों िी शसथकत ्ें िोई
          18   I गंभीर समाचार I w1-15 अगस्त, 2017w
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