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आवरण कथा
कपत्ोदा िे इस बयान िो जब फेसबुि ्ें डाला गया तो एि पाठि ्ालदीव, श्ीलंिा, बांगलादेश, मयां्ार और नेपाल ्ें लोितांकत्ि
िी प्रकतकक्या थी, अपने कगरेबान ्ें झांिो, देश िा राष्ट्रीय चररत् चेि वयवसथा पर खतरा बना रहता है. इन देशों ्ें आंकशि रूप से लोितंत्
िरो कफर बोलो, आज कया हालत है. भारत िे नागररि और अनय देश िे िाय् भी है तो इसिा एि बड़ा िारण भारतीय लोितंत् िा धुरी िे
नागररि ्ें अंतर देखो. बात यह भी सही है, पर जब ह् सवाल िरेंगे तभी रूप ्ें बने रहना है. यह बात पूरे कव्वास िे साथ िही जा सिती है कि
जवाब आएंगे. कया अपने कगरेबान ्ें झाँिने िी िुववत ह््ें है? कया पश्च्ी लोितंत् िे बरकस भारतीय लोितंत् कविासशील देशों िा प्रेरणा
आकथ्णि, तिनीिी और वैज्ाकनि क्ांकतयाँ ह्ारी परेशाकनयों िा संदेश स्ोत है. एि गरीब देश िा इतनी ्जबूती से लोितंत् िी राह पर चलना
लेिर आईं हैं? कया ह् पतन िी ओर बढ़ रहे हैं? कवस्यिारी है. पर लोितंत् िेवल वोट देने िा ना् नहीं है. इस्ें जनता
आज़ादी िे 70 साल ्ें कया ह्ने िुछ पाया नहीं, कसफ्फ खोया ही िी भागीदारी चाकहए, साथ ही लोितांकत्ि संसथाओं िी ्जबूती भी.
खोया है? सवाल यह भी है कि कजन घपलों-घोटालों िा कजक् ह् सुन रहे जनता िी भागीदारी िैसे होगी? गूगल िे िाया्णकधिारी अधयक्ष एररि
हैं, वो कया आज िी देन हैं? कया वे पहले नहीं होते थे? कया वे ह्ें अब श््ट ने िुछ साल पहले िहा था कि आने वाले पांच से दस साल िे
इसकलए कदखाई पड़ रहे हैं, कयोंकि ्ीकडया िी भूक्िा बढ़ी है. कपछले भीतर भारत दुकनया िा सबसे बड़ा इंटरनेट बाज़ार बन जाएगा. उनहोंने यह
एि दशि ्ें फेसबुि, श्वटर और बलॉग िी शकल ्ें जनता िे पास भी िहा कि िुछ बरसों ्ें इंटरनेट पर कजन तीन भाषाओं िा दबदबा होगा
जो अपना ्ीकडया आया है, कया यह उसिी देन वे हैं- कहनदी, ्ंडाररन और अंग्ेजी. सन 2020 ति
नहीं है? पारदकश्णता बढ़ने पर ह्ें अपने दोष कदखाई भारत ्ें इंटरनेट इसते्ाल िरने वालों िी संखया
दे रहे हैं. यह शीशे िा दोष नहीं है. ह्ारा दोष है, 60 िरोड़ से ऊपर होगी. इन्ें से 30 िरोड़ लोग
कजसपर लमबे अरसे से पदा्ण पड़ा था. कहनदी तथा दूसरी भाषाओं ्ें नेट सफ्फ िरेंगे.
ह् एि साथ अनेि क्ांकतयों िे बीच से होिर सन 1757 ्ें जब पलासी िे युद्ध ्ें बंगाल िे
गुज़र रहे हैं. यिीनन इन्ें सबसे बड़ी उपलशबध है नवाब कसराजुद्ौला िी सेना िो ईसट इंकडया िमपनी
संचार क्ांकत. एि ्ाने ्ें साठ िे दशि िी हररत िी ्ा्ूली सी फौज ने हराया था, तब इस देश ्ें
क्ांकत से भी जयादा बड़ी उपलशबध. हररत क्ांकत ने अखबार या खबरों िो जनता ति पहुँचाने वाला
ह्ें अनाज ्ें आत्कनभ्णर बनाया, जबकि संचार ्ीकडया नहीं था. आधुकनि भारत िे कलए वह खबर
क्ांकत ने ह्ें सूचना, ज्ान और कवचारों िे ्ा्ले युगांतरिारी थी. समपूण्ण इकतहास ्ें ऐसी रिेकिंग
्ें पुष्ट बनाया है, जो लोितंत् िा िच्चा ्ाल है. नयूज़ उंगकलयों पर कगनाई जा सितीं हैं. पर उन
ऑसट्रेकलयाई लेखि रॉकबन जेफ्ी और आसा डोरोन खबरों पर समपादिीय नहीं कलखे गए. किसी टीवी
ने अपनी किताब ‘सेलफोन नेशन’ ्ें भारत िी शो ्ें बातचीत नहीं हुई. पर 1857 िी क्ांकत होते-
्ोबाइल फोन क्ांकत िा रोचि कववरण कदया है. होते अखबार छपने लगे थे. उस बगावत िे दौरान
उनहोंने आँिड़ों िा हवाला देिर बताया कि कजन ‘कदलली उदू्ण अखबार’ और ‘कसराज-उल-अखबार’
राजयों ्ें ्ोबाइल फोन िा प्रसार जयादा हुआ वहाँ िा प्रिाशन एि कदन िे कलए भी नहीं रुिा. आज
िी आकथ्णि संवृकद्ध भी बढ़ी. ्ोबाइल फोन धारी इन अखबारों िी ितरनें ह्ें इकतहास कलखने िी
वयशकत िो िा् क्लने ्ें आसानी होती है. यकद सा्ग्ी देतीं हैं. साथ ही जनता िो अपनी वयवसथा
वह क्सत्ी-क्िेकनि, ररकशे या ऑटो वाला, सबजी से जोड़ने ्ें ्दद िरती हैं.
बेचने वाला या इसतरी वाला है तो उसिे िा् इस वकत भारतीय ्ीकडया िी साख दाँव पर
बेहतर चलता है. घर ्ें िा् िरने वाली बाई िे है. किसी दूसरे कविासशील देश ्ें पत्िाररता िो
कलए भी ्ोबाइल फोन सहायि है. फोन ने शसत्यों वह ्हतव नहीं क्ला जो भारत ्ें क्ला. आजादी
िो घर से बाहर कनिलने ्ें ्दद िी है. कपछले िे बाद इसीकलए नए अखबारों िा तेजी से प्रिाशन
लोिसभा चुनाव ्ें संचार और संपि्फ क्ांकत अपने शुरू हुआ. पत्िाररता एि िारोबार िे रूप ्ें नहीं,
चर् पर थी. नरेंद्र ्ोदी, राहुल गांधी से लेिर राष्ट्र कन्ा्णण िे एि टूल िे रूप ्ें उभर िर सा्ने
अरकवंद िेजरीवाल ति िे ररिॉडडेड संदेश ह्ारे आई. आज प्रिाकशत हो रहे 95 फीसदी से जयादा
िानों ति पहुंचने लगे हैं. अखबार और पकत्िाएं 1946 िे बाद िे हैं. आज
सवतंत् भारत ने अपने नागररिों िो तीन भी पत्िाररता िो जो सम्ान इस देश ्ें प्रापत है
्हतवपूण्ण लक्य पूरे िरने िा ्ौिा कदया है. ये लक्य हैं राष्ट्रीय एिता, वह असाधारण है.
सा्ाकजि नयाय और गरीबी िा उन्ूलन. इन लक्यों िो पूरा िरने िा चीनी स्ाज आकथ्णि कविास िे ्ा्ले ्ें ह्से आगे है, पर
साजो-सा्ान ह्ारी राजनीकत ्ें है. वयावहाररि रूप से दुकनया भर ्ें लोितांकत्ि संसथाओं और पत्िारीय ्या्णदाओं ्ें वह ह्ारे सा्ने िहीं
लोितंत् बहुत पुरानी राज-पद्धकत नहीं है. यह वसतुतः औद्ोकगि क्ांकत नहीं है. नए भारत िे ्ीकडया पर नज़र डालें तो उसिा अंतकव्णरोधी
िे साथ कविकसत हुआ है. पश्च्ी देशों ्ें इस पद्धकत िे प्रवेश िे कलए रूप भी सा्ने है. ह्ारे प्रारशमभि पत्िार सरल और आत् प्रचार से
जनता िे एि वग्ण िो आकथ्णि और शैकक्षि आधार पर चार िद् आगे दूर रहने वाले थे. उनहें जो ्ूलय और कसद्धांत कपछली पीढ़ी से क्ले थे
आना पड़ा. ह्ारा आकथ्णि आधार दो सौ साल पहले िे पश्च् से बेहतर वे आज़ादी िी लड़ाई से जुड़े थे. कपछले दो दशि ्ें ्ीकडया िा एि
नहीं है. पर ह्ारी राज-वयवसथा िई ्ानों ्ें आज िे पश्च्ी लोितंत् कवसतार और हुआ है. उस्ें िारोबार और पूँजी कनवेश पर जयादा ज़ोर है.
से टकिर लेती है. कविासशील देशों ्ें कनकव्णवाद रूप से ह्ारा लोितंत् पाठिों िी पीढ़ी भी बदल गई है. पर भारत िी ताित उसिी कवचार-
सव्णश्ेष्ठ है. शशकत है. िेवल तेल-फुलेल या िॉज़़्ेकटकस किसी स्ाज िी ताित
अपने आसपास िे देशों ्ें देखें तो पाकिसतान, अफगाकनसतान, नहीं होते. n
14 I गंभीर समाचार I w1-15 अगस्त, 2017w